________________
सांस्कृतिक चित्र भी बनाए जाते हैं और यह अनुभव किया जाता है कि सल्तनत काल के परवर्ती भाग में जो विकास हुआ, वह अकबर से शाहजहाँ तक अपनी पूर्णता पर पहुँचा। सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक स्थितियाँ दिखाने के लिए विवरण, वृत्तांत प्रस्तुत किए जाते हैं, जिनमें प्रायः मध्यकालीन इतिहास की सामग्री दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार की जाती है। मोहिब्बुल हसन ने 'हिस्टोरियंस ऑफ मेडिवल इंडिया' का संपादन किया है । मध्यकालीन इतिहास सामग्री की सीमा रेखा यह है कि उसे प्रायः राजाश्रय में लिखा गया : बाबरनामा, हुमायूँनामा, अकबरनामा, आइने अकबरी, जहाँगीरनामा, शाहजहाँनामा आदि। इनके केंद्र में सामंती समाज है और बहुसंख्यक सामान्यजन के लिए यहाँ अधिक अवसर नहीं हैं । इलियट के इतिहास और सैयद अतहर अब्बास रिज़वी में मध्यकालीन सामग्री का संकलन है। इसके अतिरिक्त अमीर खुसरो जैसे लेखक हैं जो तत्कालीन समाज पर प्रकाश डालते हैं । कुछ यात्रियों के विवरण भी हैं जिनकी शुरुआत अलबरूनी से मानी जा सकती जिसने 1030-31 में अपना यात्रा-वृत्तांत लिखा । आधुनिक इतिहासकारों ने अपने ढंग से मध्यकालीन समाज-संस्कृति का विवेचन करते हुए स्वीकार किया है कि उस समय की जो आधारभूत सामग्री (सोर्स मटीरियल) उपलब्ध है, उसमें सामाजिक-आर्थिक कारकों का विश्लेषण नितांत क्षीण है । यह उसकी सीमा रेखा है (मोहिब्बुल हसन : हिस्टोरियंस ऑफ मेडिवल इंडिया, भूमिका, पृ. 12 ) कि शासक और धर्म वहाँ इतिहास - दृष्टि को सीमित कर देते हैं । इस रूप में, कई सीमाओं के बावजूद, अबुल फ़ज़ल को इतिहास के प्रति नए दृष्टिकोण का लेखक कहा जाता है, जिसमें एक उदारता है ।
भारतीय मध्यकाल में जो कुछ रचा गया और जिसके सर्वोत्तम को भक्ति आंदोलन की पीठिका पर उपजा भक्तिकाव्य कहा जाता है, जिसका प्रसार पूरे देश में, लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में है, वह सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से कुछ सहायक हो सकता है ? यह प्रश्न विचारणीय है । रचना में यथार्थ तथा कल्पना की समन्वित भूमि होती है, जिसमें समय-समाज का यथार्थ पुनःसर्जित होता है। अलगा पाने का कार्य भी सरल नहीं होता, क्योंकि रचना न पूरी तरह दस्तावेज़ है और न कोरी कल्पना । पर मध्यकाल की रचनाशीलता, विशेषतया संतों की वाणी ( बानी) तथा भक्ति रचनाओं में जो तत्कालीन दृश्य आए हैं, वे उस समय का संकेत करते हैं। यहाँ विवरण-विस्तार अधिक नहीं हैं, पर टूटते - मूल्यों की त्रासदी व्यक्त हुई है। अकबर के समय में दुर्भिक्ष थे जिसका संकेत तुलसी में है : कलि बारहि बार दुकाल परै, बिनु अन्न दुखी सब लोग मरै । मूल्य-स्तर पर यह चिंता अधिक मुखर है, जिसे उस समय के रचना - साहित्य में देखा जा सकता है। इस संदर्भ में एक प्रासंगिक प्रश्न यह है कि क्या मध्यकाल के कवि केवल कवि थे ? संभवतः नहीं । उन्हें संत भक्त कहकर संबोधित किया गया और उनकी प्रतिबद्धताओं को भी रेखांकित किया गया । उनकी भूमिका सामाजिक-सांस्कृतिक भी है, जहाँ वे समाज-सुधारक के रूप में देखे
मध्यकालीन समय-समाज और संस्कृति / 45