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उन्होंने नहीं किया और अपने मूल प्रयोजन-सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन तथा उच्चतर मानव मूल्य का निष्पादन ईमानदारी से करते हुए, शेष को पाठक-श्रोता पर छोड़ दिया। पर उनकी रचनाओं से जो समाजदर्शन उभर कर आया, वह परिवर्तनकामी है, गहरे स्तर पर। वह तात्कालिकता से ऊपर उठा हुआ है और मानव-मूल्यों के अध्यात्म लोक तक जाता है, जिसमें केंद्रीयता मानव-हित की है। इस दृष्टि से कबीर सबसे प्रासंगिक कवियों में हैं, मध्यकालीन समाज में जाग्रत प्रतिरोध का स्वर बनकर, साथ ही विकल्प का संकेत करते हुए।
108 / भक्तिकाव्य का समाजदर्शन