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कै पंचम गाई और पूरा दृश्य रागमय है-लोकोत्सव रूप में, जहाँ अनुराग की लालिमा
सेंदुर खंड उड़ा अस, गगन भएउ सब रात
राती सगरिउ धरती, राते बिरिछन्ह पात। जायसी के समाजदर्शन में विकल्प की प्रस्तुति को, कवि के मूल्यवान प्रदेय के रूप में देखना चाहिए और यहाँ मध्यकाल, यथार्थ की अपेक्षा अपनी लोकसंस्कृति में अधिक व्यक्त हुआ है। अनेक लोकविश्वास यहाँ हैं-टोना-टटका, जादू, शकुन-अपशकुन, धर्म-व्रत, ज्योतिष-नक्षत्र आदि। पर जायसी का मन रमता है-लोकोत्सव में, क्योंकि वह उनकी संवेदनशीलता के समीप है, जहाँ वे रूमानी हैं, गीतात्मक, यद्यपि वे प्रबंधकाव्य की रचना कर रहे हैं। प्रतिभाओं का यह कौशल होता है कि वे अपने लिए उपयुक्त माध्यम खोजती हैं और कई बार उसके रूढ़िगत ढाँचे को तोड़ते हुए, उसका नया विन्यास करती हैं। नागमती रत्नसेन को संबोधित करते हुए कहती है कि मेरे प्रिय लौट आओ तो दुख सुख में बदल जाएगा : अबहूँ निठुर आउ एहि बारा, परब देवारी होइ संसारा। उसकी व्यथा है : चैत बसंता होइ धमारी, मोहि लेखे संसार उजारी। जायसी व्यापक अर्थ में लोककवि हैं, लोककथा, लोक उपादान, लोकभाषा का सक्षम उपयोग करते हुए, जिससे वे अपनी रचना को समृद्ध करते हैं। जायसी के समाजदर्शन की सही समझ में कुछ कठिनाइयाँ हैं, जैसे क्या सब कुछ सूफी मत के माध्यम से ही जानना होगा ? रचना तथा दर्शन अथवा विचार के संदर्भ में कहा जा चुका है कि विलयन से कलाकृति बनती है और विचार को संवेदन-संपत्ति बनना ही होगा, जैसे भी हो। पद्मावत में योग-शब्दावली पर्याप्त मात्रा में आई है, जो काव्य के स्वाभाविक प्रवाह में बाधा बनती है जैसे सिंहल द्वीप वर्णन खंड, जोगी खंड, रत्नसेन सूली खंड आदि में पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग हुआ है : नव खंड, नव पौरी, बज्र केवार, चार बसेरे, दशम द्वार आदि (सिंहल द्वीप)। पर इसके निहितार्थ पर विचार करें तो जायसी प्रेम को सर्वोत्तम मूल्य के रूप में प्रतिपादित करते हुए उसे योग-साधना से अधिक व्यापक भूमि पर प्रतिष्ठित करते हैं। एक संवेदनशील कवि का यह ऐसा 'मानुष धर्म' है, जिसे मध्यकालीन सांस्कृतिक सौमनस्य के श्रेष्ठतम रूप में देखना चाहिए। रत्नसेन योगी है, किसी वैयक्तिक मोक्ष-कामना के लिए नहीं, वरन उस पद्मावती तक पहुँचने के लिए, जिसे कवि चरम सौंदर्य के रूप में प्रतिपादित करता है। जोगी खंड के आरंभ में ही जायसी कहते हैं : तन विसंभर, मन बाउर लटा, अरुझा पेम, परी सिर जटा। रत्नसेन का संकल्प है : सिद्ध होइ पद्मावति, जेहि कर हिये वियोग। ज्योतिषी कहते हैं आज प्रस्थान का सही समय नहीं है, तो वह उत्तर देता है :
पेम पंथ दिन घरी न देखा। तब देखें जब होइ सरेखा तेहि तन पेम कहाँ तेहि मांसू । कया न रकत, नैन नहिं आंसू
मलिक मुहम्मद जायसी : पेम छाँड़ि नहिं लोन किछु / 131