Book Title: Bhakti kavya ka Samaj Darshan
Author(s): Premshankar
Publisher: Premshankar

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Page 205
________________ जपत पुरारी । राम-सीता की युगल मूर्ति है : दूलह राम, सिय दुलही री । इन्हें देखने में ही नेत्रों की सार्थकता है । अप्रतिम सौंदर्य है, विधाता के हाथों सर्जित (गीतावली : बाल. 106) : दूलह राम, सीय दुलही री घन - दामिनि बर बरन हरन-मन, सुंदरता नखसिख निबही री ब्याह-बिभूषन - बसन- बिभूषित, सखि अवली लखि ठगि सी रही री जीवन - जनम-लाहु, लोचन - फल है इतनोइ, लह्यौ आजु सही सुखमा- सुरभि सिंगार छीर दुहि मयन अमियमय कियो है दही री मथि माखन सिय राम सँवारे, सकल भुवन छबि मनहुँ मही री तुलसिदास जोरी देखत सुख - सोभा अतुल न जाति कही रूप- रासि बिरची बिरंचि मनो, सिला लवनि रति काम लही री । राम ने जनकवाटिका में सीता को देखा तो उनके रूप के लिए 'शोभा' शब्द का प्रयोग किया गया है, हृदय जिसे सराहता है, जैसे ब्रह्मा ने अपनी संपूर्ण निपुणता सीता को निर्मित किया । 'छबिगृह दीपसिखा जनु बरई', में सौंदर्य आलोक का है और यहाँ सौंदर्य आलंबन है, उद्दीपन नहीं । सौंदर्य की व्यापक सामाजिक स्वीकृति ही तुलसी के लिए वास्तविक सौंदर्य है जिसे उन्होंने छवि, शोभा आदि कहा और यह सुकर्म, शील से ही संभव है। तुलसी महाकवि हैं, इतने रूखे नहीं हो सकते कि सौंदर्य का स्पर्श ही करने में संकोच हो, पर उनकी मर्यादा-दृष्टि इसकी सीमाएँ जानती है । उन्होंने सौंदर्य की नई अवधारणा विकसित की और कहा कि सौंदर्य कर्म-भरे समग्र व्यक्तित्व में होता है, मात्र शारीरिक इकाइयों में नहीं । इसलिए नखशिख वर्णन का प्रयत्न यहाँ नहीं किया गया, सारा ध्यान शुभ, मंगल, कल्याण, पवित्रता आदि गुणों पर केंद्रित है। आखिर ज्ञानी (विवेकवान ) भक्त का सौंदर्य क्या है ? उदात्त गुण भाव जिससे वह राम के प्रति निष्काम भाव से समर्पित होता है । तुलसी के लिए मानव मूल्यों का उच्चतम संसार केवल विचारणा का विषय नहीं, उसके आचरण से व्यक्तित्व को जो दीप्ति और आभा मिलती है, वह अप्रतिम है, दुर्लभ । राम सुन्दर हैं, क्योंकि उनके पास सामाजिक कर्मों की अक्षय निधि है और वे उदात्त महामानव हैं। तुलसी का समाजदर्शन भक्तिचिंतन में अंतर्भुक्त है और उसका व्यापक लोक धरातल है । मध्यकाल में स्थित तुलसी अपने समय की चुनौती स्वीकार करते हैं, सजग स्रष्टा के रूप में और वे जानते हैं कि जिस आराध्य राम के प्रति उनकी प्रीति है, उसे सामान्यजन के बीच प्रतिष्ठित करना है। इसी से राम की विश्वसनीयता प्रमाणित हो सकेगी और इसीलिए सर्वाधिक ऊर्जा महाकवि ने दी, अयोध्याकांड को, जहाँ से काव्यनायक का संघर्षशील व्यक्तित्व उभरता है और भरत के भ्रातृत्व की प्रतिष्ठा होती है। जीवन के जितने दृश्य तुलसी उभारते हैं, उतने अन्यत्र मिलना कठिन 210 / भक्तिकाव्य का समाजदर्शन

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