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तुलसी की सही पहचान और वस्तुपरक मूल्यांकन में कई बाधाएँ अरसे तक रही हैं। उन्हें धार्मिक, यहाँ तक कि संप्रदायगत कर्मकांडी दृष्टि से देखा गया जिससे महाकवि की विराट प्रतिभा को उचित परिप्रेक्ष्य में देखने में कठिनाई हुई । एक पूर्वाग्रह - भरी दृष्टि वह भी थी कि उनके विचार प्रतिगामी हैं और उनका जनवादी चरित्र दुर्बल है। इनसे अलग हटकर अकादमिक शोधी प्रयत्न हैं जहाँ तुलसी ने कहाँ से क्या ग्रहण किया है, इसी में पूरी शक्ति लगाई गई। शुभ यह कि उदार तुलसी के नए मूल्यांकन के प्रयत्न हुए और प्रगतिपंथियों ने ही कई भ्रांतियों को तोड़ने का प्रयत्न किया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने तुलसी के विवेचन को सही बौद्धिक आधार देते हुए, जिस गहरी संलग्नता से उनके संवेदन- संसार को परखा था, उसे नयी दिशाएँ देने का प्रयत्न किया गया। तुलसी आचार्य शुक्ल के काव्य - व्यक्तित्व के प्रतिमान हैं, जिनके लिए वे हमारे गोस्वामीजी, बाबाजी आदि संबोधनों का प्रयोग करते हुए उन्हें अपना अत्यंत समीपी पाते हैं। लगता है जैसे वे महाकवि के समर्थ पैरवीकार हैं, पर तर्क और प्रमाण के साथ । शुक्लजी तुलसी के साथ अंतरंग यात्रा करते हैं, गहराई में उतरते हैं और फिर उनका विवेचन आलोचना - सामर्थ्य के साथ करते हैं । तुलसी की समाज सापेक्ष स्थिति स्वीकारते हुए आचार्य शुक्ल ने 'लोक-धर्म' का विवेचन किया, जिसे डॉ. रामविलास शर्मा, विश्वनाथ त्रिपाठी आदि प्रगतिवादी समीक्षकों ने लोकवाद, मानववाद आदि कहकर विवेचित किया । आचार्य शुक्ल ने लिखा है कि 'भगवान का जो प्रतीक तुलसीदासजी ने लोक के सम्मुख रखा है, भक्ति का जो प्रकृत आलंबन उन्होंने खड़ा किया है, उसमें सौंदर्य, शक्ति और शील तीनों विभूतियों की पराकाष्ठा है' (गोस्वामी तुलसीदास, पृ. 53 ) । तुलसी की गहरी भावुकता का विवेचन करते हुए वे कहते हैं : 'कवि की पूर्ण भावुकता इसमें है कि वह प्रत्येक मानव स्थिि में अपने को डालकर उसके अनुरूप भाव का अनुभव करे । इस शक्ति की परीक्षा का रामचरित से बढ़कर विस्तृत क्षेत्र और कहाँ मिल सकता है । जीवन स्थिति के इतने भेद और कहाँ दिखाई पड़ते हैं' (वही, पृ. 84 ) । विस्तार तथा गहराई के संयोजन के उत्कृष्ट उदाहरण रूप में रामचरितमानस को प्रस्तुत किया जाता है। तुलसी के विषय में व्याप्त कतिपय भ्रांतियाँ और उन पर लगाए गए आक्षेपों का उत्तर देते हुए डॉ. रामविलास शर्मा ने उन्हें सर्वोपरि जनकवि के रूप में निरूपित किया : 'तुलसी हमारे जनजातीय जन-जागरण के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं । उनकी कविता की आधारशिला जनता की एकता है । ... तुलसी का साहित्य कला की शिक्षा देने के लिए अक्षय निधि है । उनसे हमें बार-बार सीखना चाहिए, कैसे उनकी वाणी जनता को इतनी गहराई से आंदोलित कर सकी। उनसे हमें गंभीर मानव - सहानुभूति और उच्च विचारों की शिक्षा लेनी चाहिए जिनसे साहित्य महान् होता है' (परंपरा का मूल्यांकन, पृ. 88 ) । तुलसी सामान्यजन को संबोधित करते चलते हैं, निकट संवाद स्थापित करते हैं और बौद्धिक वर्ग को ललकारते हैं, यह कहते हुए कि रामचरित जे सुनत अघाहीं, रस
168 / भक्तिकाव्य का समाजदर्शन