________________
आरंभ है : गवन-चार पद्मावति सुना, उठा धसकि जिउ औ सिर धुना । आँखों में आँसू भर आए, नैहर छूट रहा है : नैहर आइ काह सुख देखा ? जनु होइगा सपने का लेखा । जायसी यहाँ फिर सखियों को सम्मिलित कर करुण दृश्य को मार्मिकता देते हैं, जिसका संकेत वे मानसरोदक खंड में कर चुके हैं। विदाई के समय सखियाँ बिलखती हैं और पद्मावती कहती है :
मिलहु सखी, हम तहंवा जाहीं । जहाँ जाइ पुनि आउब नाहीं सात समुद्र पार वह देसा । कित रे मिलन, कित आब संदेसा अगम पंथ परदेस सिधारी । न जनौं कुसल कि बिथा हमारी पितै न छोह कीन्ह हिय माहां । तहं को हमहिं राख गहि बाहां हम तुम मिलि एकै संग खेला। अंत बिछोह आनि गिउ मेला तुम्ह असहित संघती पियारी । जियत जीउ नहिं करौं निनारी कंत चलाई का करौं, आयसु जाइ न मेटि
पुन हम मिलहिं कि ना मिलहिं, लेहु सहेली भेंट |
भारतीय जीवन के जिन पारिवारिक दृश्यों को जायसी ने संलग्नता से चित्रित किया है, जहाँ वृहत्तर समाज सम्मिलित है और जहाँ केवल वर्णन है, उसे परंपरा -निर्वाह के रूप में देखना होगा। ग्राम जीवन से प्राप्त कुछ सामग्री का उपयोग वे काव्य-समृद्धि के लिए करते हैं और मनोवांछित आशय की व्यंजना के लिए भी । जहाँ उनका मन रमता है, वहाँ वे रुकते ठहरते हैं, नहीं तो वर्णन करके आगे बढ़ जाते हैं । ग्राम-जीवन अपनी विपन्नता में प्रकृति को सहचरी रूप में देखता है; लोकाचार का निर्वाह वह करता है, रस्म-रिवाज का भी और लोकोत्सव, पर्व उसके जीवन को रसमयता देते हैं। संयोग-वियोग दोनों में इनका वर्णन हुआ है, एक में उल्लास का बोध कराता और दूसरे में परिवर्तित दृश्य की पीड़ा बताता । प्रिय की उपस्थिति में षट् ऋतु-वर्णन-खंड में सब ऋतुएँ प्रीतिकर हैं : ऋतु ग्रीषम कै तपन न तहाँ, जेठ असाढ़ कंत घर जहाँ अथवा रितु पावस बरसै पिउ पावा, सावन भादौं अधिक सुहावा । पर पद्मावत में ठीक इसी के बाद नागमती - वियोग - खंड है, जहाँ दृश्य करुण है : चैत बसंता होइ धमारी, मोहिं लेखे संसार उजारी । जायसी मानव - भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए प्रकृति का भरपूर उपयोग करते हैं और प्रसंगों को मार्मिकता देते हैं 1
जिसे जायसी का प्रेम पंथ कहा जाता है और जिसमें वियोग-विषाद का अपना महत्त्व है, उसी के साथ उनकी सौंदर्य दृष्टि भी संयोजित है । प्रेम का परिपाक वियोग
होता है, एक प्रकार से उसकी परीक्षा होती है, वह और भी प्रगाढ़ होता है । जायसी के ध्यान में 'बिछोह' का महत्त्व है, पर इसे वे देहवाद से ऊपर उठाने का प्रयत्न करते हैं और इसमें वे नारी-पुरुष दोनों को सम्मिलित करते हैं । राजा रत्नसेन पद्मावती की रूप-चर्चा सुनकर ही उसे पाना चाहता है, जोगी हो जाता है। पद्मावत में क्रम है : नखशिख खंड, प्रेम खंड और जोगी खंड । यह योग रत्नसेन को तप के निकट
118 / भक्तिकाव्य का समाजदर्शन