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जैसे पीत कपोलों पर सुंदर लगता था ( 12 - 49 ) । कालिदास को रघुवंशियों की महान् परंपरा का ध्यान है, पर राम का व्यक्तित्व वीरता - शृंगार की सम्मिलित भूमि पर रचा गया है, महाकवि की सौंदर्य दृष्टि के अनुरूप ।
भवभूति के 'उत्तररामचरित' नाटक में राम का दूसरा रूप उभरता है, जिसमें सीता की भी उल्लेखनीय उपस्थिति है । भवभूति ने करुण रस को एकमात्र रस कहा, और इस प्रकार करुणा भाव का महत्त्व स्वीकार किया। इसकी व्याप्ति व्यापक है, जिससे उच्चतर मानवमूल्यों का निष्पादन होता है । प्रायः कवियों ने सीता-निर्वासन की कथा को छोड़ दिया क्योंकि इससे राम का महानायकत्व खंडित होता है, यद्यपि वाल्मीकीय रामायण के उत्तरकांड में वह विस्तार से आई है । भवभूति की नारी - दृष्टि में सहानुभूति सीता के साथ है और राम भी उनके गुणों की निरंतर सराहना करते हैं: जन्म से ही पवित्र सीता ( उत्तर. 1 । 13 ) । विद्वानों ने प्रश्न उठाया है कि वाल्मीकि अथवा भवभूति ने राम कथा में सीता - निर्वासन के करुण प्रसंग को क्यों स्थान दिया है । भवभूति ने इसे उत्तररामचरित कहा, राम की मूल गाथा का परवर्ती आख्यान । सीता पवित्र हैं, केवल लोकापवाद से रक्षा के लिए सम्राट राम सीता को इस यातना से गुजारते हैं । जैसे राज- कर्तव्य वैयक्तिक प्रेम पर हावी है, पर भवभूति राम को भी आंतरिक व्यथा से गुजारते हैं, जिससे राम का व्यक्तित्व करुणा की नई भूमि पर देखा जा सकता है । उत्तररामचरित में राम का विलाप प्रकारांतर से सीता की महिमा का बखान ही है, जिसमें प्रकृति भी सम्मिलित है : सीता का सस्नेह - स्मरण करता पर्वत का मयूर (320) । रामकथा में भवभूति का स्थान कई दृष्टियों से विशिष्ट है, पर परवर्ती परंपरा राम की उत्तरगाथा का अनुसरण नहीं करती क्योंकि उसे लगता है कि इससे राम का व्यक्तित्व धूमिल होता है। आधुनिक समय में भारतभूषण अग्रवाल ने अपने काव्य 'अग्निलीक' में सीता का पक्ष प्रस्तुत किया है, जिनका राम पर आक्षेप है कि वे महत्त्वाकांक्षा की राजनीति से परिचालित हैं और तथाकथित रामराज्य मात्र एक छल है : ये तो राज्य के मतवाले थे / विजयश्री के भूखे थे / प्यार से इन्हें लगाव ही कथा (अग्निलीक, पृ. 52 ) । भवभूति भक्तिभावना से परिचालित कवि-नाटककार नहीं हैं और राम-सीता के माध्यम से नारी - पुरुष - संबंधों पर भी विचार करते हैं । यह उनकी मौलिकता है, जिसे व्यापक स्वीकृति मिली है : 'संस्कृत काव्य में भवभूति का स्थान कालिदास के बाद ही स्वीकार किया जाता हैं । 'उत्तरामचरित' में त्रासद स्थितियाँ हैं और राम का अंतःसंघर्ष काव्य-नाटक का मूल स्वर कहा जा सकता है' ( सी . कुन्हन राजा : सर्वे ऑफ संस्कृत लिटरेचर, पृ. 188 ) । इस प्रकार राम के मानुषीकरण की जो प्रक्रिया संस्कृत काव्य में आरंभ हुई, उसे आगे चलकर विकास मिला ।
भारतीय साहित्य में रामकाव्य की विस्तृत परंपरा है, जिससे हिंदी भक्तिकाव्य प्रेरणा पाई है, सामग्री भी । आदिकवि का वाल्मीकि रामायण प्रस्थान है, पर अध्यात्म
84 / भक्तिकाव्य का समाजदर्शन