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संयोजन है। सूर में कृष्णकाव्य का चरम विकास है, सभी स्तरों पर । भक्तिकाव्य के दो प्रमुख प्रस्थान हैं, यद्यपि इनसे बाहर जाकर राम और कृष्ण भी रचना के प्रयत्न हुए हैं, पर उन्हें ऐसी व्यापक स्वीकृति नहीं मिली। इन दोनों अवतारों की केंद्रीयता रचना की अनिवार्यता बनी, इसमें संदेह नहीं । रामकथा के प्रस्थान रूप में वाल्मीकि रामायण सर्वस्वीकृत है और कवियों ने उसकी सामग्री का उपयोग अपने भाव-संसार के अनुसार किया है। वाल्मीकि, कालिदास, भवभूति आदि मुख्य रूप से इसमें आते हैं। विचारणीय यह कि राम अथवा कृष्ण पुराकथा के सर्वोत्तम नायक हैं, पर रचना में आकर उनके व्यक्तित्व में निरंतर विकास होता है। समय-समाज के दबाव उन्हें नए संदर्भ देते हैं जिसमें कवि का अपना व्यक्तित्व भी क्रियाशील रहता है। वाल्मीकि के राम महानायक हैं- अनेक गुण समुच्चय । धार्मिकता यहाँ आदिकवि को इस सीमा तक परिचालित नहीं कर पाती कि काव्यतंतु क्षीण हो जाएँ । राम जिस विराट व्यक्तित्व का बोध कराते हैं, उसमें अलौकिकता कम, सामर्थ्य अधिक है। उनमें सात्त्विक क्रोध भी है, जो उनके दायित्व - बोध से जुड़ा है, जैसे सीताहरण के अनंतर वे दुष्टों के विनाश का संकल्प लेते हैं। रामकथा का प्रचार-प्रसार वृहत्तर भारत, अर्थात् पड़ोसी देशों में भी हुआ, जैसे इंडोनेशिया, श्याम, जावा, सुमात्रा आदि में, जिससे उसकी व्यापकता का पता चला है। राम मर्यादा के चरित्र हैं और कृष्ण की तुलना में शृंगार से थोड़ा दूर भी, इसीलिए उनकी सीमाएँ हैं। यह सीमा है शीलवान व्यक्तित्व की, जिसे अपनी मर्यादाओं का ध्यान है । वह मृगी पर बाण नहीं चलाएगा, दुष्ट को भी समझा-बुझाएगा, फिर दंडित करेगा आदि । संस्कृत के अतिरिक्त प्राकृत में भी रामकथा है, जिसका उल्लेख विद्वानों ने किया है ( कामिल बुल्के : रामकथा ) । दक्षिण में कंबन रामायण का विशेष स्थान है, जिसकी दृष्टि प्रचलित राम - कथा से किंचित् भिन्न है । तेलुगु ( रंगनाथ रामायण), बंगला (कृतिवासी रामायण), मराठी ( एकनाथ : भावार्थ रामायण) आदि प्रसिद्ध हैं ।
संस्कृत में रामकाव्य के लिए कालिदास के 'रघुवंशम् ' महाकाव्य का उल्लेख किया जाता है, पर यहाँ वह रघुवंशों की परंपरा में अंतर्भुक्त है । छः- सात सर्गों में यह कथा वर्णनात्मक ढंग से आई है। राम का स्वरूप क्या है ? कालिदास कहते हैं कि कौशल्याने तमोगुण हरने वाले पुत्र को जन्म दिया जिसे वशिष्ठ ने राम मंगलकारी नाम दिया (10-66-67 ) । इसी क्रम में महाकवि कहते हैं कि संसार के दोष भाग गए, गुणों का प्रसार हुआ, मानों विष्णु के साथ स्वर्ग पृथ्वी पर उतर आया है । राम के दायित्व का भी संकेत है : रावण के मुकुट की मणियाँ ज़मीन पर गिर पड़ीं। राम का कर्तव्यबोध आरंभ में ही निश्चित है और कथा में राम इसे प्रमाणित करते हैं। पर ‘रघुवंश’ में कालिदास शृंगार के रसराजत्व भाव के साथ हैं, जैसे द्वादश सर्ग में अयोध्या लौटते हुए राम सीता से वार्तालाप करते हैं : पर्वत की ढलान पर जो तमाल वृक्ष है, उसके किसलय का कर्णफूल तुम्हें पहनाया था और जो ज्वार - अंकुर
भक्तिकाव्य का स्वरूप / 83