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रेखांकित करती है। नामदेव की ऐसी व्यापक स्वीकृति कि वे सिख धर्म को प्रभावित कर सके और साधारण जातियाँ उन्हें अपना मसीहा मानती हैं।
ज्ञानेश्वर-नामदेव की संत-परंपरा का क्रम एकनाथ, तुकाराम, रामदास तक है जिन्हें पंथ मराठी संत कहा गया। इसे विष्णु भिकाजी कोलते ने 'मराठी संतों का सामाजिक कार्य' कहा है। संत एकनाथ (1533-1596) को युगप्रवर्तन का श्रेय दिया जाता है, इस दृष्टि से कि वे संत ज्ञानेश्वर के अवतार-रूप माने जाते हैं। गृहस्थ होकर भी उन्होंने संत धर्म का निर्वाह किया और संत ज्ञानेश्वर-नामदेव की परंपरा को नई गतिशीलता दी। जीवन अभावग्रस्त था, पर उनकी प्रज्ञा असाधारण थी, और युवावस्था के पूर्व ही वे रामायण-महाभारत आदि का गहन अध्ययन कर चुके थे। गरु जनार्दनस्वामी की प्रेरणा से एकनाथ ने चतुःश्लोकी भागवत पर मराठी ओवी छंद में भाष्य लिखा, जो ज्ञानेश्वर की परंपरा का विकास है। ज्ञानेश्वर का भाष्य गीता पर है, एकनाथ का भागवत पर। प्रवचन, संकीर्तन से उन्होंने भक्ति का व्यापक प्रचार-प्रसार किया और उन्हें जनप्रियता मिली। भागवत चतुर्थ प्रस्थान, भक्ति का प्रस्थान है और इस दृष्टि से एकनाथ की 'नाथ भागवत' (1573) का महत्त्व असंदिग्ध है। ज्ञानेश्वर की 'ज्ञानेश्वरी' के क्रम में एकनाथ के भाष्य ‘नाथ भागवत' का आदर-सम्मान है। पर नाथभागवत में संवाद कृष्ण-उद्धव के बीच है, जिसका आधार भागवत का ग्यारहवाँ स्कंध है। आकार में यह ज्ञानेश्वरी से अधिक बड़ी है। एकनाथ की मान्यता है कि भागवत धर्म का आशय है-प्राणिमात्र के प्रति प्रेम-समानता का भाव और यह सामाजिक चेतना उनकी उदारता का बोध तो कराती ही है, उसमें सही सौमनस्य का आग्रह भी है।
भागवत एकनाथ का प्रिय ग्रंथ है और ‘नाथ भागवत' की मान्यता पंडितजन में भी है। यहाँ वे भागवत धर्म का मानवीय पक्ष उजागर करते हैं, जिससे उसे सामान्यजन में स्वीकृति मिली। मूल भागवत में रेखांकित किया गया है कि भक्ति में वर्ण-जाति के लिए अवसर नहीं है और सभी उसके अधिकारी हैं। भक्ति का सामाजीकरण भागवत में कई स्थलों पर व्यक्त हुआ है, जहाँ कहा गया कि ईश्वर के श्रवण-कीर्तन से अधम भी वन्दनीय बनते हैं (भागवत : 3/33/6)। एकनाथ प्रेमभाव को भागवत धर्म के सामाजिक पक्ष के रूप में निरूपित करते हैं। उन्होंने लोकसंग्रह का आग्रह किया, जिसमें अंतःकरण की शुद्धि नामस्मरण से ही संभव है और कहा कि चित्त शुद्ध हो तो, आत्मज्ञान की प्राप्ति सहज हो जाती है। उनके विचार में सर्वोत्तम भक्ति वही है, जिसमें विधाता का दर्शन सबमें किया जाय। एकनाथ ने 'नाथ भागवत' के साथ 'भावार्थ रामायण' ग्रंथ रचा, जो पूर्ण न हो सका। कहा जाता है कि महाकवि तुलसीदास के व्यक्तित्व से प्रभावित भावार्थ रामायण अपने समय से उद्वेलित रचना है, जिसमें राम-रावण के माध्यम से मध्यकालीन समय-समाज पर टिप्पणियाँ हैं। यहाँ गीता, रामचरितमानस की यह व्याख्या रेखांकित की गई है कि दुष्टता से मुक्ति दिलाने
भक्तिकाव्य का स्वरूप / 67