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ममता के बंधन बाँधता गया । उसी से साइकोलॉजिकल इफेक्ट हो गया और पत्नी के लिए मेरापन शुरू हो गया । उससे दुःख होता है, 'नहीं है मेरी, नहीं है मेरी' करेंगे तो 'मेरापन' के बंधन खुल जाएँगे, तब दुःखमुक्ति हो जाएगी ।
संसार की चीजें बाधक नहीं हैं, ममता बाधक है । जिस चीज़ पर ममता रखी उस चीज़ से बंध गए। असल में कौन सी चीज़ अपनी है ? अंत में तो शरीर भी साथ नहीं देता न !
जो बगैर ममता के मरे उसका मोक्ष है। ममता सहित मोक्ष में प्रवेश नहीं मिलता ।
'ममता गलत चीज़ है' ऐसा ज्ञान होना बहुत बड़ी कमाई है। अक्रम विज्ञान तो इतनी हद तक स्पष्ट कर देता है कि जिसे ममता है, वह 'हम' हैं ही नहीं ।
स्वरूपज्ञानी में जो ममता होती है, वह ड्रामेटिक ममता होती है। ड्रामे में होती है वैसी !
ममतारहित भोगवटा कितना मुक्त मन वाला होता है ! ज़िंदगी में जिसने लालच नहीं किया, वह भगवान को ढूँढ निकालता है !
एक खास प्रकार के लालचवाले को लोभी कहते हैं। लालची और लोभी में फर्क है । लोभी एक ही दिशा में लोभी होता है । जबकि लालची को सभी चीज़ों का लालच रहता है। हर किसी चीज़ में से सुख भोग लेने का लालच । लालची का छुटकारा भी मुश्किल है। लालच से तो खुद का ध्येय चूक जाते हैं। लालची ही हर जगह फँसता है। लालची तो खुद का सर्वस्व अहित करने वाला कहलाता है।
लालच तो भौतिक सुखों को भोग लेने की नीयत की वजह से होता है। इसमें फिर कोई नियम या कानून नहीं होता। हर कहीं से, येनकेन प्रकारेण, सुख छीनना !
विषय का लालच भयंकर दुःखों को न्योता देता है। विषय से
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