Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 48] [ ज्ञाताधर्मकथा कलाशिक्षण ९८-तए णं तं मेहकुमारं अम्मापियरो सातिरेगट्ठवासजायगं चेव (गभटुमे वासे) सोहणंसि तिहिकरणमुहत्तंसि कलायरियस्स उवणेन्ति / तते णं से कलायरिए मेहं कुमारं लेहाइयाओ गणितप्पहाणाओ सउणरुतपज्जवसाणाओ बावरि कलाओ सुत्तओ अ अत्थओ अ करणओ य सेहावेति, सिक्खावेति। तत्पश्चात मेघकूमार जब कुछ अधिक पाठ वर्ष का हया अर्थात गर्भ से आठ वर्ष का हा तब माता-पिता ने शुभ तिथि, करण और मुहूर्त में कलाचार्य के पास भेजा। तत्पश्चात् कलाचार्य ने मेघकुमार को गणित जिनमें प्रधान है ऐसी, लेखा आदि शकुनिरुत (पक्षियों के शब्द) तक की बहत्तर कलाएँ सूत्र से, अर्थ से और प्रयोग से सिद्ध करवाई तथा सिखलाईं। ९९-तंजहा-(१) लेहं (2) गणियं (3) रूवं (4) नट्ट (5) गीयं (6) वाइयं (7) सरगयं (8) पोक्खरगयं (9) समतालं (10) जयं (11) जगवायं (12) पासयं (13) अट्ठावयं (14) पोरेकच्चं (15) दगमट्टियं (16) अन्नविहिं (17) पाणविहिं (18) वत्थविहिं (19) विलेवणविहिं (20) सयणविहि (21) अज्ज (22) पहेलियं (23) मागहियं (24) गाहं (25) गोइयं (26) सिलोयं (27) हिरण्णजुत्ति (28) सुवन्नत्ति (29) चुन्नत्ति (30) आभरणविहिं (31) तरुणीपडिकम्म (32) इथिलक्खणं (33) पुरिसलक्खणं (34) हयलक्खणं (35) गयलक्खणं (36) गोणलक्खणं (37) कुक्कुडलक्खणं (38) छत्तलक्खणं (39) डंडलक्खणं (40) असिलक्खणं (41) मणिलक्खणं (42) कागणिलक्खणं (43) वत्थुविज्ज (44) खंधारमाणं (45) नगरमाणं (46) वूहं (47) पडिवूह (48) चारं (49) पडिचारं (50) चक्कवूह (51) गरुलवूहं (52) सगडवूहं (53) जुद्धं (54) निजुद्धं (55) जुद्धातिजुद्धं (56) अट्ठिजुद्धं (57) मुठ्ठिजुद्धं (58) बाहुजुद्धं (59) लयाजुद्धं (60) ईसत्थं (61) छरुप्पवायं (62) धणुव्वेयं (63) हिरन्नपागं (64) सुवन्नपागं (65) सुत्तखेडं (66) वट्टखेडं (67) नालियाखेडं (68) पत्तच्छेज्ज (69) कडगच्छेज्जं (70) सज्जीवं (71) निज्जीवं (72) सउणरुअमिति / वे कलाएँ इस प्रकार हैं---(१) लेखन, (2) गणित, (3) रूप बदलना, (4) नाटक, (5) गायन, (6) वाद्य बजाना, (7) स्वर जानना, (8) वाद्य सुधारना, (9) समान ताल जानना, (10) जुना खेलना, (11) लोगों के साथ वाद-विवाद करना, (12) पासों से खेलना, (13) चौपड़ खेलना, (14) नगर की रक्षा करना, (15) जल और मिट्टी के संयोग से वस्तु का निर्माण करना, (16) धान्य निपजाना, (17) नया पानी उत्पन्न करना, पानी को संस्कार करके शुद्ध करना एवं उष्ण करना, (18) नवीन वस्त्र बनाना, रंगना, सीना और पहनना, (19) विलेपन की वस्तु को पहचानना, तैयार करना, लेप करना आदि, (20) शय्या बनाना, शयन करने की विधि जानना आदि, (21) आर्या छंद को पहचानना और बनाना, (22) पहेलियाँ बनाना और बूझना, (23) मागधिका अर्थात् मगध देश की भाषा में गाथा आदि बनाना, (24) प्राकृत भाषा में गाथा आदि, बनाना (25) गीति छंद बनाना, (26) श्लोक (अनुष्टुप् छंद) बनाना, (27) सुवर्ण बनाना, उसके आभूषण बनाना, पहनना आदि (28) नई चांदी बनाना, उसके आभूषण बनाना, पहनना आदि, (29) चूर्ण-गुलाव अबीर आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org