________________ सत्तमो वग्गो-सप्तम वर्ग 1-4 अध्ययन ७०-सत्तमस्स उक्खेवओ। एवं खलु जंबू! जाव चत्तारि अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा---सूरप्पभा, आयवा, अच्चिमालो, पभंकरा। सातवें वर्ग का उत्क्षेप कहना चाहिए-जम्बूस्वामी ने प्रश्न किया-भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने छठे वर्ग का यह अर्थ कहा तो सातवें वर्ग का क्या अर्थ कहा है ? उत्तर में सुधर्मास्वामी ने कहा-हे जम्बू ! भगवान् महावीर ने सप्तम वर्ग के चार अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं / उनके नाम ये हैं--(१) सूर्यप्रभा (2) प्रातपा (3) अचिमाली और (4) प्रभंकरा / ७१-पढमज्झयणस्स उक्खेवओ। एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ / यहाँ प्रथम अध्ययन का उपोद्घात कहना चाहिए / सुधर्मास्वामी ने उत्तर दिया-जम्बू ! उस काल और उस समय राजगृह में भगवान् पधारे यावत् परिषद् उनकी उपासना करने लगी। ७२-तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरप्पभा देवी सूरंसि विमाणंसि सूरप्पभंसि सीहासणंसि, सेसं जहा कालीए तहा, नवरं पुश्वभवो अरवखुरीए नयरीए सूरप्पभस्स गाहावइस्स सूरसिरीए भारियाए सूरप्पभा दारिया / सूरस्स अग्यमाहिसी, ठिई अद्धपलिओवमं पंचर्चाहं वाससएहि अमहियं / सेसं जहा कालीए / एवं सेसाओ वि सव्याओ अरक्खुरीए नयरीए। सत्तमो वग्गो समत्तो उस काल और उस समय सूर्य (सूर) प्रभादेवी सूर्य विमान में सूर्यप्रभ सिंहासन पर आसीन थी। शेष समग्र कथानक कालीदेवी के समान / विशेष बात इतनी कि-पूर्वभव में अरक्खुरी नगरी में सूर्याभ गाथापति को सूर्यश्री भार्या थी। उनकी सूर्यप्रभा नामक पुत्री थी। अन्त में मरण के पश्चात् वह सूर्य नामक ज्योतिष्क-इन्द्र की अग्रमहिषी हुई / उसकी स्थिति वहाँ पांच सौ वर्ष अधिक प्राधे पल्योपम को है / शेष सर्व वृत्तान्त कालीदेवी के समान जानना चाहिए। इसी प्रकार शेष सब-तीनों देवियों का वृत्तान्त जानना चाहिए / वे भी (पूर्वभव में) अरक्खुरी नगरी में उत्पन्न हुई थीं। / / सातवां वर्ग समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.