________________ 556 ] [ ज्ञाताधर्मकथा विधि का प्रदर्शन किया और वन्दन तथा नमस्कार करके चली गई। तब गौतमस्वामी ने उसके पूर्वभव की पृच्छा की / भगवान् ने उसके पूर्वभव का वृत्तान्त कहा, इत्यादि। ___ आठों अध्ययन काली-अध्ययन सदृश ही समझ लेने चाहिए। इनमें जो विशेष बात है, वह इस प्रकार है--पूर्वभव में इन पाठ में से दो जनी बनारस नगरी में, दो जनी राजगृह में, दो जनी श्रावस्ती में और दो जनी कौशाम्बी में उत्पन्न हुई थीं। सबके पिता का नाम राम और माता का नाम धर्मा था। सभी पावं तीर्थंकर के निकट दीक्षित हुई थीं। वे पुष्पचूला नामक आर्या की शिष्या हुई / वर्तमान भव में ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियाँ हैं। सबकी आयु नौ पल्योपम की कही गई है / सब महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होंगी और सब दुःखों का अन्त करेंगी। यहाँ दसवें वर्ग का निक्षेप-उपसंहार कहना चाहिए, अर्थात् यों कह लेना चाहिए कि यावत् सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने दसवे वर्ग का यह अर्थ कहा है। / / दसवाँ वर्ग समाप्त / / अन्तिम उपसंसार ८०एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं पुरिसुत्तमेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं अयमठे पण्णत्ते / धम्मकहासुयक्खंधो समत्तो दहि वग्गेहि / णायाधम्मकहाओ समत्ताओ। हे जम्बू ! अपने युग में धर्म को प्रादि करने वाले, तीर्थ के संस्थापक, स्वयं बोध प्राप्त करने वाले, पुरुषोत्तम यावत् सिद्धि को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने धर्मकथा नामक द्वितीय श्रुतस्कन्ध का यह अर्थ कहा है। धर्मकथा नामक द्वितीय श्रुतस्कन्ध दस वर्गों में समाप्त / [ज्ञाताधर्मकथा समाप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org