________________ 284] / ज्ञाताधर्मकथा अपनी पीठ पर से तुम्हें समुद्र में गिरा दूगा / प्रलोभन में न पाए --अपने मन को दृढ रखा तो तुम्हें चम्पा नगरी तक पहुंचा दूंगा।। . शैलक यक्ष दोनों को पीठ पर बिठाकर लवणसमुद्र के ऊपर होकर चला जा रहा था। रत्नदेवी जब वापिस लौटी और दोनों को वहाँ न देखा तो अवधिज्ञान से जान लिया कि वे मेरे चंगुल से निकल भागे हैं / तीव्र गति से उसने पीछा किया। उन्हें पा लिया / अनेक प्रकार से विलाप किया परन्तु जिनपालित शैलक यक्ष की चेतावनी को ध्यान में रखकर अविचल रहा / उसने अपने मन पर पूरी तरह अंकुश रखा। परन्तु जिनरक्षित का मन डिग गया। शृगार और करुणाजनक वाणी सुनकर रत्नदेवी के प्रति उसके मन में अनुराग जागृत हो उठा। ___ अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार यक्ष ने उसे पीठ पर से गिरा दिया और निर्दयहृदया रत्नदेवी ने तलवार पर झेल कर उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जिनपालित अपने मन पर नियंत्रण रखकर दृढ रहा और सकुशल चम्पानगरी में पहुंच गया। पारिवारिक जनों से मिला और माता-पिता की शिक्षा न मानने के लिए पछतावा करने लगा। ___ कथा बड़ी रोचक है / पाठक स्वयं विस्तार से पढ़कर उसके असली भाव-लक्ष्य और रहस्य को हृदयंगम करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org