________________ 426 ] [ ज्ञाताधर्मकथा देवाणुप्पिया ! हथिणाउरं नगरं, तत्थ णं तुम पंडुरायं सपुतयं-जुहिट्ठिलं भीमसेणं अज्जुणं नउलं सहदेवं, दुज्जोहणं भाइसयसमग्गं गंगेयं विदुरं दोणं जयदहं सउणि कीवं आसत्थामं करयल जाव कटु तहेव समोसरह / ' तत्पश्चात् (प्रथम दूत को द्वारिका भेजने के तुरन्त बाद में) द्रुपद राजा ने दूसरे दूत को बुलाया / बुलाकर उससे कहा---'देवानुप्रिय ! तुम हस्तिनापुर नगर जाओ। वहाँ तुम पुत्रों सहित पाण्डु राजा को-उनके पुत्र युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव को, सौ भाइयों समेत दुर्योधन को, गांगेय, विदुर, द्रोण, जयद्रथ, शकुनि, क्लीव (कर्ण) और अश्वत्थामा को दोनों हाथ जोड़कर यावत् मस्तक पर अंजलि करके उसी प्रकार (पहले के समान) कहना, यावत्-समय पर स्वयंवर में पधारिए। ९६-तए णं से दूए एवं वयासी जहा वासुदेवे, नवरं भेरी नस्थि, जाव जेणेव कंपिल्लपुरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तत्पश्चात् दूत ने हस्तिनापुर जाकर उसी प्रकार कहा जैसा प्रथम दूत ने श्रीकृष्ण को कहा था / तब जैसा कृष्ण वासुदेव ने किया, वैसा ही पाण्डु राजा ने किया / विशेषता यह है कि हस्तिनापुर में भेरी नहीं थी। (अतएव दूसरे उपाय से सब को सूचना देकर और साथ लेकर पाण्डु राजा भी) कांपिल्यपुर नगर की ओर गमन करने को उद्यत हुए। अन्य दूतों का अन्यत्र प्रेषण ९७-एएणेव कमेणं तच्चं दूयं चंपानयरि, तत्थ णं तुम कण्हं अंगरायं, सेल्लं, नंदिरायं करयल तेहेव जाव समोसरह / इसी क्रम से तीसरे दूत को चम्पा नगरी भेजा और उससे कहा--तुम वहाँ जाकर अंगराज कृष्ण को, सेल्लक राजा को और नंदिराज को दोनों हाथ जोड़कर यावत् कहना कि स्वयंवर में पधारिए / ९८-चउत्थं दूयं सुत्तिमई नार, तत्थ णं सिसुपालं दमघोससुयं पंचभाइसयसंपरिवुडं करयल तहेव जाव समोसरह / चौथा दूत शुक्तिमती नगरी भेजा और उसे आदेश दिया-तुम दमघोष के पुत्र और पांच सौ भाइयों से परिवृत शिशुपाल राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना, यावत् स्वयंवर में पधारिए। ९९--पंचमगं दूयं हस्थिसीसनगरं, तत्थ णं तुमं दमदंतं नाम रायं करयल तहेब जाव समोसरह / __पाँचवां दूत हस्तीशीर्ष नगर भेजा और कहा-तुम दमदंत राजा को हाथ जोड़ कर उसी प्रकार कहना यावत् स्वयंवर में पधारिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org