________________ सत्तरहवाँ अध्ययन : आकीर्ण ] [481 १६-भरित्ता सगडीसागडं जोएंति, जोइत्ता जेणेव गंभीरपोयद्वाणे तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता सगडीसागडं मोएंति, मोइत्ता पोयवहणं सज्जेंति सज्जित्ता तेसि उक्किट्ठाणं सद्द-फरिसरस-रूव-गंधाणं कठुस्स य तणस्स य पाणियस्स य तंदुलाण य समियस्स य गोरसस्स य जाव' अन्नेसि च बहूणं पोयवहणपाउग्गाणं पोयवहणं भरेंति / उक्त सब द्रव्य भरकर उन्होंने गाड़ी-गाड़े जोते / जोत कर जहाँ गंभीर पोतपट्टन था, वहाँ पहुँचे / पहुँच कर गाड़ी-गाड़े खोले / खोल कर पोतवहन तैयार किया / तैयार करके उन उत्कृष्ट शब्द, स्पश, रस, रूप और गध के द्रव्य तथा काष्ठ, तृण, जल, चावल, पाटा, गोरस तथा अन्य बहुत-से पोतवहन के योग्य पदार्थ पोतवहन में भरे / १७-भरित्ता दक्खिणाणुकलेणं वाएणं जेणेव कालियदीवे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेति, लंबित्ता ताई उक्किट्ठाई सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाई एगट्टियाहि कालियदीवं उत्तारेंति, उत्तारित्ता जहि जहिं च णं ते आसा आसयंति वा, सयंति वा, चिट्ठति वा, तुयटेंति वा, तहि तहि च णं ते कोडुबियपुरिसा ताओ वीणाओ य जाव विचित्तवीणाओ य अन्नाणि बहूणि सोइंदिययाउग्गाणि य दव्वाणि समुदीरेमाणा समुदीरेमाणा चिट्ठति, तेसि च परिपेरंतेणं पासए ठवेंति, ठवित्ता णिच्चला णिफंदा तुसिणीया चिट्ठति / वे उपर्युक्त सब सामान पोतवहन में भर कर दक्षिण दिशा के अनुकूल पवन से जहाँ कालिक द्वीप था, वहाँ आये / पाकर लंगर डाला / लंगर डाल कर उन उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध के पदार्थों को छोटी-छोटी नौकाओं द्वारा कालिक द्वीप में उतारा / उतार कर वे घोड़े जहाँ-जहाँ वैठते थे, सोते थे और लोटते थे, वहाँ-वहाँ वे कौटुम्बिक पुरुष वह वीणा, विचित्र वीणा आदि श्रोत्रेन्द्रिय को प्रिय वाद्य बजाते रहने लगे तथा इनके पास चारों ओर जाल स्थापित कर दिएजाल बिछा दिए / जाल बिछा करके वे निश्चल, निस्पन्द और मूक होकर स्थित हो गए। १८-जत्थ जत्थ ते आसा आसयंति वा जाव तुयटॅति वा, तत्थ तत्थ णं ते कोडुबियपुरिसा बहणि किण्हाणि य 5 कट्टकम्माणि य जाव संधाइमाणि य अन्नाणि य बहुणि चक्खिदियपाउम्गाणि य दव्वाणि ठवेंति, तेसि परिपेरतेणं पासए ठति, ठवित्ता णिच्चला णिफंदा तुसिणीया चिट्ठति / जहाँ-जहाँ वे अश्व बैठते थे, यावत् लोटते थे, वहाँ-वहाँ उन कौटुम्बिक पुरुषों ने बहुतेरे कृष्ण वर्ण वाले यावत शुक्ल वर्ण वाले काष्ठकर्म यावत संघातिम तथा अन्य बहत-से चक्ष-इन्द्रिय के योग्य पदार्थ रख दिए तथा उन अश्वों के पास चारों ओर जाल बिछा दिया और वे निश्चल और मूक होकर छिप रहे। १९-जत्थ जत्थ ते आसा आसयंति वा, सयंति वा, चिट्ठति वा, तुयति वा, तत्थ-तत्थ णं ते कोडुबियपुरिसा तेसि बहूणं कोटपुडाण य अन्नेसि च घाणिदियपाउग्गाणं दवाणं पुजे य णियरे य करेंति, करिता तेसि परिपेरते जाव चिट्ठति / जहाँ-जहाँ वे अश्व बैठते थे, सोते थे, खड़े होते थे अथवा लोटते थे वहाँ-वहाँ उन कौटुम्बिक 1. अ. 8 सूत्र 55 2. अ. 17 सूत्र 14-15 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org