________________ 480] [ ज्ञाताधर्मकथा तत्पश्चात् कनककेतु राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा-'देवानुप्रियो ! तुम सांयात्रिक वणिकों के साथ जाओ और कालिक द्वीप से मेरे लिए अश्व ले पायो।' उन्होंने भी राजा का आदेश अंगीकार किया। तत्पश्चात् कौटुम्बिक पुरुषों ने गाड़ो-गाड़े सजाए / सजा कर उनमें बहुत-सी वीणाएँ, बल्लकी, भ्रामरी, कच्छपी, भंभा, षभ्रमरी आदि विविध प्रकार की वीणाओं तथा विचित्र वीणाओं से और श्रोत्रेन्द्रिय के योग्य अन्य बहुत-सी वस्तुओं से (कानों को प्रिय लगने योग्य सामग्री-साधनों) से गाड़ी-गाड़े भर लिये। १५–भरित्ता बहूणं किण्हाण य जाव [नीलाण य लोहियाण य हालिदाण य] सुक्किल्लाण य कट्टकम्माण य [चित्तकम्माण य पोत्थकम्माण य लेप्पकम्माण य] गंथिमाण य जाव [वेढिमाण य पूरिमाण य] संघाइमाण य अन्नेसि च बहूणं चक्खिदियपाउग्गाणं दवाणं सगडीसागडं भरेंति / भरित्ता बहूर्ण कोटपुडाण य केयइपुडाण य जाव [पत्तपुडाण य चोयपुडाण य तगरपुडाण य एलापुडाण य हिरिवेरपुडाण य उसीरपुडाण य चंपगपुडाण य मरुयपुडाण य दमणगपुडाण य जाइपुडाण य जुहियापुडाण य मल्लियपुडाण य वासंतियपुडाण य कप्पूरपुडाण य पाडलपुडाण य] अन्नेसि च बहूणं घाणिदियपाउग्गाणं दव्वाणं सगडीसागडं भरेंति। भरित्ता बहुस्स खंडस्स य गुलस्स य सक्कराए य मच्छंडियाए य परफुत्तरपउमुत्तर अन्नेसि च जिभिदियपाउग्गाणं दम्वाणं सगडीसागडं भरति / भरित्ता बहूर्ण कोयवयाण य कंबलाण य पावरणाण य नवतयाण य मलयाण य मसगाण य सिलावट्टाण य जाव हंसगम्भाण य अन्नेसि च फासिदियपाउग्गाणं दवाणं सगडीसागडं भरेंति। श्रोत्रेन्द्रिय के योग्य (प्रिय) वस्तुएँ भर कर बहुत-से कृष्ण वर्ण वाले, [नील, रक्त, पीत एवं] शुक्ल वर्ग वाले काष्ठकर्म (लकड़ी के पटिये पर चित्रित चित्र), चित्रकर्म, पुस्तकर्म (पुठे पर बनाए चित्र), लेप्यकर्म (मृत्तिका से बनाए चित्र-विचित्र रूप) तथा वेढिम, पूरिम तथा संघातिम एवं अन्य चक्षु-इन्द्रिय के योग्य द्रव्य गाड़ी-गाड़ों में भरे।। ___ यह भर कर बहुत-से कोष्ठपुट' (कोष्ठपुट में जो पकाये जाते हैं वे वास-सुगंधित द्रव्य विशेष) इसी प्रकार केतकीपुट, पत्रपुट, चोय-त्वपुट, तगरपुट, एलापुट, हरिवेर (बालक) पुट, उसीर (खसखस का मूल अथवा एक विशिष्ट पुष्पजाति) पुट, चम्पकपुट, मरुक (मरुपा) पुट, दमनकपुट, जाती (जाई) पुट, यूथिकापुट, मल्लिकापुट, वासंतीपुट, कपूरपुट, पाटलपुट तथा अन्य बहुत-से घ्राणेन्द्रिय को प्रिय लगने वाले पदार्थों से गाड़ी-गाड़े भरे। तदनन्तर बहुत-से खांड, गुड, शक्कर, मत्संडिका (विशिष्ट प्रकार की शक्कर), पुष्पोत्तर (शर्करा-विशेष) तथा पद्मोत्तर जाति की शर्करा आदि अन्य अनेक जिह्वा-इन्द्रिय के योग्य द्रव्य गाड़ी-गाड़ों में भरे। उसके बाद बहुत-से कोयतक-रुई के बने वस्त्र, कंबल-रत्न-कंबल, प्रावरण-मोढ़ने के वस्त्र, नवत-जीन, मलय-विशेष प्रकार का प्रासन अथवा मलय देश में बने वस्त्र, अथवा मसग—चर्म से मढ़े एक प्रकार के वस्त्र, शिलापट्टक-चिकनी शिलाएँ यावत् हंसगर्भ (श्वेत वस्त्र) तथा अन्य स्पर्शेन्द्रिय के योग्य द्रव्य गाड़ी-गाड़ों में भरे / 1. कोष्ठपुटे—ये पच्यन्ते ते कोष्ठपुटा: वासविशेषा:--अभयदेवटीका / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org