________________ सत्तरहवां अध्ययन : प्राकीर्ण ] [ 479 अश्वों का अपहरण १२-ते संजत्ताणावावाणियगा एवं वयासी-'तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! गामागर जाव आहिंडह, लवणसमुदं च अभिक्खणं अभिक्खणं पोयवहणेणं ओगाहह, तं अत्थि याई केइ भे कहिंचि अच्छेरए दिट्टपुत्वे ?' तए णं संजत्ताणावावाणिया कणगकेउं रायं एवं वयासी—'एवं खलु अम्हे देवाणुप्पिया ! इहेव हत्यिसीसे नयरे परिक्सामो, तं चेव जाव कालियदीवतेणं संबूढा, तत्थ णं बहवे हिरण्णागरा य जाव' बहवे तत्थ आसे, कि ते हरिरेणुसोणिसुत्तगा जाव' अणेगाई जोयणाई उन्भमंति। तए णं सामी ! अम्हेहि कालियदीवे ते आसा अच्छेरए दिट्ठा / फिर राजा ने उन सांयात्रिक नौकावणिकों से इस प्रकार कहा-'देवानुप्रियो ! तुम लोग ग्रामों में यावत् पाकरों में (सभी प्रकार की वस्तियों में) घूमते हो और बार-बार पोतवहन द्वारा लवणसमुद्र में अवगाहन करते हो, तुमने कहीं कोई आश्चर्यजनक-अद्भुत-अनोखी वस्तु देखी है ?' तब सांयात्रिक नौकावणिकों ने राजा कनककेतु से कहा-'देवानुप्रिय ! हम लोग इसी हस्तिशीर्ष नगर के निवासी हैं; इत्यादि पूर्ववत् कहना चाहिए, यावत् हम कालिक द्वीप के समीप गए। उस द्वीप में बहुत-सी चाँदी की खाने यावत् बहुत-से अश्व हैं / वे अश्व कैसे हैं ? नील वर्ण वाली रेणु के समान और श्रोणिसूत्रक के समान श्याम वर्ण वाले हैं। यावत् वे अश्व हमारी गंध से कई योजन दूर चले गए। अतएव हे स्वामिन् ! हमने कालिक द्वीप में उन अश्वों को आश्चर्यभूत (विस्मय की वस्तु) देखा है।' १३--तए णं से कणगकेऊ तेसि संजत्ताणावावाणियगाणं अंतिए एयमठं सोच्चा णिसम्म ते संजत्ताणावावाणियए एवं वयासी-'गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया ! मम कोडुबियपुरिसेहि द्धि कालियदीवाओ ते आसे आणेह।' तए णं ते संजत्ता कणगकेउं रायं एवं वयासो-'एवं सामी !' ति कटु आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति / तत्पश्चात् कनककेतु राजा उन सांयात्रिकों से यह अर्थ सुन कर उन्हें कहा–'देवानुप्रियो ! तुम मेरे कौटुम्बिक पुरुषों के साथ जानो और कालिक द्वीप से उन अश्वों को यहाँ ले पायो।' तब सांयात्रिक वणिकों ने कनककेतु राजा से इस प्रकार कहा---'स्वामिन् ! बहुत अच्छा' ऐसा कहकर उन्होंने राजा का वचन आज्ञा के रूप में विनयपूर्वक स्वीकार किया। १४-तए णं कणगकेऊ राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं बयासी- 'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! संजत्ताणावावाणिएहि सद्धि कालियदीवाओ मम आसे आणेह।' ते वि पडिसुणेति / तए णं ते कोड बियपरिसा सगडीसागडं सज्जेंति, सज्जित्ता तत्थ णं बहणं वीणाण य, वल्लकीण य, भामरीण य, कच्छभीण य, भंभाण य, छब्भामरीण य, विचित्तवीणाण य, अन्नेसि च बहूर्ण सोइंदियपाउग्गाणं दवाणं सगडीसागडं भरेंति / 1-2 प्र. 17 सूत्र 9. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org