Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 502] [ ज्ञाताधर्मकथा किवाड़ों पर पानी छिड़का। पानी छिड़क कर किवाड़ उघाड़ लिये। तत्पश्चात् राजगह के भीतर प्रवेश किया। प्रवेश करके ऊँचे-ऊँचे शब्दों से आघोषणा करते-करते इस प्रकार बोला-~~ २४–'एवं खलु देवाणुप्पिया ! चिलाए णामं चोरसेणावई पंचहि चोरसएहि सद्धि सोहगुहाओ चोरपल्लीओ इह हव्वमागए धण्णस्स सस्थवाहस्स गिहं घाउकामे, तं जो गं णवियाए माउयाए दुद्धं पाउकामे, से गं निग्गच्छउ' त्ति कटु जेणेव धण्णस्स सत्थवाहस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धण्णस्स गिहं बिहाडेइ। 'देवानुप्रियो ! मैं चिलात नामक चोरसेनापति, पांच सौ चोरों के साथ, सिंहगुफा नामक चोर-पल्ली से, धन्य सार्थवाह का घर लूटने के लिए यहाँ पाया है। जो नवीन माता का दूध पीना चाहता हो अर्थात् मरना चाहता हो, वह निकल कर मेरे सामने पावे।' इस प्रकार कह कर वह धन्य सार्थवाह के घर आया / आकर उसने धन्य सार्थवाह का (द्वार) उघाड़ा। २५--तए णं से धणे सत्थवाहे चिलाएणं चोरसेणावइणा पंचहि चोरसएहि सद्धि गिहं घाइज्जमाणं पासइ, पासित्ता भीए, तत्थे, पंचहि पुत्तेहिं सद्धि एगंतं अवक्कमइ / तए णं से चिलाए चोरसेणावई धण्णस्स सत्यवाहस्स गिहं घाएइ, धाइत्ता सुबहुं धणकणग जाव सावएज्जं सुसुमं च दारियं गेण्हइ, गेण्हित्ता रायगिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव सीहगुहा तेणेव पहारेत्य गमणाए। धन्य सार्थवाह ने देखा कि पांच सौ चोरों के साथ चिलात चोरसेनापति के द्वारा घर लूटा जा रहा है / यह देखकर वह भयभीत हो गया, घबरा गया और अपने पांचों पुत्रों के साथ एकान्त में चला गया-छिप गया / तत्पश्चात् चोर सेनापति चिलात ने धन्य सार्थवाह का घर लूटा / लट कर बहुत सारा धन, कनक यावत् स्वापतेय (द्रव्य) तथा सुसुमा दारिका को लेकर वह राजगृह से बाहर निकल कर जिधर सिंहगुफा थी, उसी ओर जाने के लिए उद्यत हुआ। नगररक्षकों के समक्ष फरियाद २६–तए णं से धणे सत्यवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुबहुं धणकणगं सुसुमं दारियं णवहरियं जाणिता महत्थं महग्धं महरिहं पाहुडं गहाय जेणेव गगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं जाव पाहुडं उवणे, उणित्ता एवं वयासी–‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! चिलाए चोरसेणावई सीहगुहाओ चोरपल्लीओ इहं हव्वमागम्म पंचहि चोरसएहि सद्धि मम गिहं घाएत्ता सुबहुं धणकणगं सुसुमं च दारियं गहाय जाव पडिगए, तं इच्छामो णं देवाणुप्पिया ! सुसुमादारियाए कूवं गमित्तए / तुम्भे णं देवाणुप्पिया ! से विपुले धणकणगे, ममं सुसुमा दारिया। चोरों के चले जाने के पश्चात् धन्य सार्थवाह अपने घर आया / पाकर उसने जाना कि मेरा बहुत-सा धन कनक और सुसुमा लड़की का अपहरण कर लिया गया है। यह जान कर वह बहुमूल्य भेंट लेकर के रक्षकों के पास गया और उनसे कहा-'देवानुप्रियो ! चिलात नामक चोरसेनापति सिंहगुफा नामक चोरपल्ली से यहाँ आकर, पांच सौ चोरों के साथ, मेरा घर लूट कर और बहुत-सा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org