Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 504] [ ज्ञाताधर्मकथा कर चिलात भयभीत और उद्विग्न हो गया / वह सुसुमा दारिका को लेकर एक महान् अग्रामिक' (जिसके बीच में या आसपास कोई गाँव न हो ऐसी) तथा लम्बे मार्ग वाली अटवी में घुस गया। उस समय धन्य सार्थवाह सुसुमा दारिका को अटवी के सन्मुख ले जाती देख कर, पांचों पुत्रों के साथ छठा आप स्वयं कवच पहन कर, चिलात के पैरों के मार्ग पर चला अर्थात् उसके पैरों के चिह्न देखता-देखता आगे बढ़ा / वह उसके पीछे-पीछे चलता हुआ, गर्जना करता हुआ, चुनौती देता हुआ, पुकारता हुआ, तर्जना करता हुआ और उसे त्रस्त करता हुआ उसके पीछे-पीछे चलने लगा। सुसुमा पुत्री का शिरच्छेदन ३०-तए णं से चिलाए तं धणं सत्थवाहं पंचहि पुत्तेहि अप्पछठं सन्नद्धबद्धं समणुगच्छमाणं पासइ, पासित्ता अत्थामे अबले अपरक्कमे अवीरिए जाहे णो संचाएइ सं समं दारियं णिवाहित्तए. ताहे संते तंते परितंते नीलुप्पलं असि परामुसइ, परामुसित्ता सुसुमाए दारियाए उत्तमंग छिदइ, छिदित्ता तं गहाय तं अगामियं अडवि अणुपविठे। चिलात ने देखा कि धन्य-सार्थवाह पांच पुत्रों के साथ आप स्वयं छठा सन्नद्ध होकर मेरा पीछा कर रहा है / यह देख कर निस्तेज, निर्बल, पराक्रमहीन एवं वीर्यहीन हो गया / जब वह सुसुमा दारिका का निर्वाह करने (ले जाने) में समर्थ न हो सका, तब श्रान्त हो गया-थक गया, ग्लानि को प्राप्त हया और अत्यन्त श्रान्त हो गया। अतएव उसने नील कमल के समान तलवार हाथ में ली और सुसुमा दारिका का सिर काट लिया। कटे सिर को लेकर वह उस अग्रामिक या दुर्गम अटवी में घुस गया। ३१-तए णं चिलाए तीसे अगामियाए अडवोए तण्हाए अभिभूए समाणे पम्हढदिसाभाए सीहगुहं चोरपल्लि असंपत्ते अंतरा चेव कालगए। ___ चिलात उस अग्रामिक अटवी में प्यास से पीडित होकर दिशा भूल गया / वह चोरपल्ली तक नहीं पहुँच सका और बीच में ही मर गया। विवेचन-सूत्र संख्या २०वें से यहाँ तक का कथानक अत्यन्त विस्मयजनक है / राजगृह जैसे राजधानीनगर में चोरों का, भले ही वे पांच सौ थे, चुनौती और धमकी देते हुए प्रवेश करना, किसके घर डाका डालना है, यह प्रकट करना और डाका डालना, फिर भी नगर-रक्षकों के कानों पर जून रेंगना--उनका सर्वथा बेखबर रहना कितना आश्चर्योत्पादक है ! धन और कन्या का अपहरण होने के पश्चात् धन्य नगर-रक्षकों के समक्ष फरियाद करने जाता है तो उसे बहुमूल्य भेंट लेकर जाना पड़ता है / इसके सिवाय भी उसे कहना पड़ता है कि चोरों द्वारा लूटा गया माल सब तुम्हारा होगा, मुझे केवल अपनी पुत्री चाहिए। धन्य के ऐसा कहने पर नगर-रक्षक अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर जाते हैं और चोरों को परास्त करते हैं। मगर चुराया हुआ धन जब उन्हें मिल जाता है तो वहीं से वापिस लौट जाते हैं। सुसुमा लड़की के उद्धार के लिये वे कुछ भी नहीं करते, मानो उन्हें धन की ही चिन्ता थी, लड़की 1. टीकाकार ने 'प्रगामियं' का 'अग्राम्य' अर्थ किया है / इसका अर्थ अगम्य अर्थात् दुर्गम भी हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org