Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 604
________________ द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा प्रथम वर्ग प्रथम अध्ययन : काली प्रास्ताविक प्रथम श्रुतस्कंध में दृष्टान्तों द्वारा धर्म का प्रतिपादन किया गया है / इस द्वितीय श्रुतस्कंध में साक्षात् कथाओं द्वारा धर्म का अर्थ प्रकट किया गया है / १-तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे होत्था / वण्णओ। तस्स णं रायगिहस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए तत्थ णं गुणसीलए णामं चेइए होत्था / वण्णओ। उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। उसका वर्णन यहाँ कहना चाहिए / उस राजगृह के बाहर उत्तरपूर्व दिशाभाग (ईशान कोण) में गुणशील नामक चैत्य था। उसका भी वर्णन यहाँ प्रौपपातिकसूत्र के अनुसार समझ लेना चाहिए। सुधर्मा का आगमन २-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मा णामं थेरा भगवंतो जाइसंपन्ना, कुलसंपन्ना जाव' चउद्दसपुव्वी, चउणाणोवगया, पंचहि अणगारसएहि सद्धि संपरिवुडा, पुवाणुपुरिव चरमाणा, गामाणुगामं दूइज्जमाणा, सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव रायगिहे णयरे, जेणेव गुणसीलए चेइए, जाव' संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति / उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के अन्तेवासी आर्य सुधर्मा नामक स्थविर उच्चजाति से सम्पन्न, कुल से सम्पन्न यावत् चौदह पूर्वो के वेत्ता और चार ज्ञानों से युक्त थे। वे पांच सौ अनगारों से परिवृत होकर अनुक्रम से चलते हुए, ग्रामानुग्राम विचरते हुए और सुखे-सुखे विहार करते हुए जहाँ राजगृह नगर था और जहाँ गुणशील चैत्य था, वहाँ पधारे / यावत् संयम और तप के द्वारा आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे / जम्बू का प्रश्न ३–परिसा णिग्गया / धम्मो कहिओ / परिसा जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स अंतेवासी अज्जजंबू णामं अणगारे जाव' पज्जुबासमाणे एव वयासी-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं छहस्स अंगस्स पढमसुयक्खंधस्स णायसुणाय अयमठे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! सुयक्खंधस्य धम्मकहाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पण्णते? सुधर्मास्वामी को वन्दना करने के लिए परिषद् निकली / सुधर्मास्वामी ने धर्म का उपदेश दिया / तत्पश्चात् परिषद् वापिस चली गई। उस काल और उस समय में आर्य सुधर्मा अनगार के अन्तेवासी आर्य जम्बू नामक अनगार 1. प्र. अ. सूत्र 4. 2. प्र. अ. सूत्र 4. 3. प्र. अ. सूत्र 6. 4. पाठान्तर-'नायाणं' / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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