Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 620
________________ बीओ वग्गो-द्वितीय वर्ग पढमं अज्झयणं प्रथम अध्ययन ४४--जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं-जाव दोच्चस्स वग्गस्स उक्खेवओ। जम्बूस्वामी ने प्रश्न किया--भगवन् ! यावत् मुक्तिप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने प्रथम वर्ग का यह अर्थ कहा है तो दूसरे वर्ग का क्या अर्थ कहा है ? ४५---एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं दोच्चस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा--(१) सुभा (2) निसुभा (3) रंभा (4) निरंभा (5) मदणा। श्री सुधर्मास्वामी उत्तर देते हैं-जम्बू ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान् महावीर ने दूसरे वर्ग के पांच अध्ययन कहे हैं / वे इस प्रकार हैं-(१) शंभा (2) निशुभा (3) रंभा (4) निरंभा और (5) मदना। ४६-जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं दोच्चस्स यग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अट्ठे पण्णते? (प्रश्न) भगवन् ! यदि श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान महावीर ने धर्मकथा के द्वितीय वर्ग के पांच अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं तो द्वितीय वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है ? ४७-एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, गुणसोलए चेइए, सामो समोसढे, परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ / (उत्तर) जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था, गुणशील चैत्य था / भगवान का पदार्पण हुआ / परिषद् (नगर से) निकली और भगवान् की उपासना करने लगी। ४८-तेणं कालेणं तेणं समएणं सुभा देवी बलिचंचाए रायहाणीए सुंभवडेसए भवने सुभंसि सीहासणंसि विहरइ / कालीगमएणं जाव नट्टविहिं उवदंसेत्ता पडिगया। उस काल और उस समय में (भगवान् जब राजगृह में पधारे तब) शुभानामक देवी बलिचंचा राजधानी में, शुभावतंसक भवन में शुभ नामक सिंहासन पर आसीन थी, इत्यादि काली देवी के अध्ययन के अनुसार समग्र वृत्तान्त कहना चाहिए / वह नाट्यविधि प्रदर्शित करके वापिस लौट गई। ४९-पुव्वभवपुच्छा / सावत्थी नयरी, कोट्ठए चेइए, जियसत्तू राया, सुभे गाहावई, सुभसिरो भारिया, सुभा दारिया, सेसं जहा कालीए। वरं अद्ध छाई पलिओवमाइं ठिई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660