________________ अठारहवाँ अध्ययन : सुसुमा ] [ 505 को नहीं ! लड़की को प्राप्त करने के लिए अकेले ही अपने पांचों पुत्रों के साथ धन्य सार्थवाह को जाना पड़ता है। __ यह सत्य है कि प्रस्तुत कथानक एक ज्ञात-उदाहरण मात्र ही है तथापि इस वर्णन से उस समय की शासन-व्यवस्था का जो चित्र उभरता है, उस पर आधुनिक काल का कोई भी विचारशील व्यक्ति गौरव का अनुभव नहीं कर सकता। इस वृत्तान्त से हमारा यह भ्रम दूर हो जाना चाहिए कि अतीत का सभी कुछ अच्छा था / यहाँ प्राचार्यवर्य श्री हेमचन्द्र का कथन स्मरण आता है-'न कदाचिदनीदृशं जगत्' अर्थात् जगत् कभी ऐसा नहीं था, ऐसी बात नहीं है / वह तो सदा ऐसा ही रहता है / 32-- एवामेव समणाउसो ! जाव पव्वइए समाणे इमस्स ओरालियसरीरस्स बंतासवस्स जाव [पित्तासवस्स खेलासवस्स सुक्कासवस्स सोणियासवस्स दुरुय-उस्सास-निस्सासस्स दुरुय-मुत्त-पुरीस-पूयबहुपडिपुण्णस्स उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-वंत-पित्त-सुक्क-सोणियसंभवस्स अधुवस्स अणितियस्स असासयस्स सडण-पडण-विद्धंसणधम्मस्स पच्छा पुरं च णं अवस्स-विप्पजहणस्स] वण्णहेउं जाव आहारं आहारेइ, से गं इहलोए चेव बहूणं समणाणं समणीणं सावयाणं सावियाणं हीलणिज्जे जाव अणुपरियट्टिस्सइ, जहा व से चिलाए तक्करे / इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणो ! हमारे जो साधु या साध्वी प्रवृजित होकर जिससे वमन बहता-झरता है [पित्त, कफ, शुक्र एवं शोणित बहता है, जिससे अमनोज्ञ उच्छ्वास-निश्वास निकलता है, जो अशुचि मूत्र, पुरीष, मवाद से भरपूर है, जो मल, मूत्र, कफ, रेंट (नासिकामल), वमन, पित्त, शुक्र, शोणित की उत्पत्ति का स्थान है, अध्रुव, अनित्य, अशाश्वत है, सड़ना, पड़ना तथा विध्वस्त होना जिसका स्वभाव है और जिसका प्रागे या पीछे अवश्य ही त्याग ऐसे अपावन एवं] विनाशशील इस औदारिक शरीर के वर्ण (रूप-सौन्दर्य) के लिए यावत् आहार करते हैं, वे इसी लोक में बहुत-से श्रमणों, श्रमणियों, श्रावकों और श्राविकाओं की अवहेलना का पात्र बनते हैं और दीर्घ संसार में पर्यटन करते हैं, जैसे चिलात चोर अन्त में दुःखी हुआ, (उसी प्रकार वे भी दुःखी होते हैं)। धन्य का शोक ३३--तए णं से धणे सत्थवाहे पंचहि पुत्तेहि अप्पछठे चिलायं परिधाडेमाणे परिधाडेमाणे तण्हाए छुहाए य संते तंते परितंते नो संचाएइ चिलायं चोरसेणावई साहित्थि गिण्हित्तए। से णं तओ पडिनियत्तइ, पडिनियत्तिता जेणेव सा सुसुमा दारिया चिलाएणं जीवियाओ ववरोविया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुसुमं दारियं चिलाएणं जीवियाओ ववरोवियं पासइ, पासित्ता परसुनियत्तेव चंपगपायवे निव्वत्तमहेन्व इंदलट्ठी विमुक्कबंधणे धरणितलंसि सव्वंगेहि धसत्ति पडिए। तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह पांच पुत्रों के साथ आप छठा स्वयं चिलात के पीछे दौड़ता-दौड़ता प्यास से और भूख से श्रान्त हो गया, ग्लान हो गया और बहुत थक गया। वह चोरसेनापति चिलात को अपने हाथ से पकड़ने में समर्थ न हो सका / तव वह वहाँ से लौट पड़ा, लौट कर वहाँ पाया जहाँ सुसुमा दारिका को चिलात ने जीवन से रहित कर दिया था / वहाँ अाकर उसने देखा कि बालिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org