Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ सोलहवां अध्ययन : द्रौपदी ] [ 449 तए णं कण्हे वासुदेवे कच्छुल्ल णारयं एवं वयासी-'तुभं चेव णं देवाणुप्पिया! एवं पुवकम्मं / ' तए णं से कच्छुल्लनारए कण्हेणं वासुदेवेणं एवं कुत्ते समाणे उप्पणि विजं आवाहेइ, आवाहित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए। तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने कच्छुल्ल नारद से कहा-'देवानुप्रिय ! तुम बहुत-से ग्रामों, आकरों नगरों आदि में प्रवेश करते हो। तो किसी जगह द्रौपदी देवी की श्रुति आदि कुछ मिली है ? तब कच्छुल्ल नारद ने कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार कहा--'देवानुप्रिय ! एक बार मैं धातकीखण्ड द्वीप में, पूर्व दिशा के दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र में अमरकंका नामक राजधानी में गया था / वहां मैंने पद्मनाभ राजा के भवन में द्रौपदी देवी जैसी (कोई महिला) देखी थी।' __ तब कृष्ण वासुदेव ने कच्छुल्ल नारद से कहा-'देवानुप्रिय ! यह तुम्हारी ही करतूत जान पड़ती है।' कृष्ण वासुदेव के द्वारा इस प्रकार कहने पर कच्छुल्ल नारद ने उत्पतनी विद्या का स्मरण किया। स्मरण करके जिस दिशा से आये थे, उसी दिशा में चल दिए। द्रौपदी का उद्धार १७०-तए णं से कण्हे वासुदेवे दूयं सद्दावेई, सद्दावित्ता एवं बयासी गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! हथिणाउरं, पंडुस्स रण्णो एयमझें निवेदेहि--'एवं खलु देवाणुप्पिया ! धायइसंडे दीवे पुरच्छिमद्धे अमरकंकाए रायहाणीए पउमनाभभवणंसि दोवईए देवीए पउत्ती उवलद्धा / तं गच्छंतु पंच पंडवा चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा पुरच्छिम-बेयालीए ममं पडिवालेमाणा चिट्ठतु।' तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने दूत को बुलाया। बुला कर उससे कहा--'देवानुप्रिय ! तुम हस्तिनापुर जाओ और पाण्डु राजा को यह अर्थ निवेदन करो-'हे देवानुप्रिय ! ! धातकीखण्ड द्वीप में, पूर्वार्ध भाग में, अमरकंका राजधानी में, पद्मनाभ राजा के भवन में द्रौपदी देवी का पता लगा है / अतएव पांचों पाण्डव चतुरंगिणी सेना से परिवृत होकर रवाना हों और पूर्व दिशा के वेतालिक' (लवणसमुद्र) के किनारे मेरी प्रतीक्षा करें।' १७१-तए णं दूए जाव भणइ--'पडिवालेमाणा चिट्ठह / ' ते वि जाव चिट्ठति / तत्पश्चात् दूत ने जाकर यावत् कृष्ण के कथनानुसार पाण्डवों से प्रतीक्षा करने को कहा। तब पांचों पाण्डव वहां जाकर यावत् कृष्ण वासुदेव की प्रतीक्षा करने लगे। १७२–तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सन्नाहियं भेरि ताडेह / ' ते वि तालेति / तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर कहा- 'देवानुप्रियो ! 1. जहां समुद्र की वेल चढ़ कर गंगा नदी में मिलती है, वह स्थान / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org