Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ सत्तरहवाँ अध्ययन : पाकीर्ण ] [475 उस समय उन वणिकों को माकन्दीपुत्रों के समान' सैकड़ों उत्पात हुए, यावत् समुद्री तूफान भी प्रारंभ हो गया। उस समय वह नौका उस तूफानी वायु से बार-बार कांपने लगी, बारबार चलायमान होने लगी, बार-बार क्षुब्ध होने लगी और उसो जगह चक्कर खाने लगी। उस समय नौका के निर्यामक (खेवटिया) की बुद्धि मारी गई, श्रुति (समुद्रयात्रा सम्बन्धी शास्त्र का ज्ञान) भी नष्ट हो गई और संज्ञा (होश-हवास) भी गायब हो गई / वह दिशाविमूढ हो गया। उसे यह भी ज्ञान न रहा कि पोतवाहन (नौका) कौन-से प्रदेश में है या कौन-सी दिशा अथवा विदिशा में चल रहा है ? उसके मन के संकल्प भंग हो गये / यावत् वह चिन्ता में लीन हो गया / ५-तए णं ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गभिल्लगा य संजत्ताणावावाणिया य जेणेव से निज्जामए तेणेव उवागच्छंति, उवाच्छित्ता एवं वयासी-'किण्णं तुमं देवाणुप्पिया ! ओयमणसंकप्पे जाव [करयलपल्हत्थमुखे अट्टज्झाणोवगए] झियायसि / ' तए णं से णिज्जामए ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गम्भिल्लगा य संजत्ताणावावाणियगा य एवं वयासी–‘एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! गट्ठमईए जाव अवहिए त्ति कटु तओ ओहयमणसंकप्पे जाव झियामि / ' उस समय बहुत-से कुक्षिधार (फावड़ा चलाने वाले नौकर), कर्णधार, गम्भिल्लक (भीतरी फुटकर काम करने वाले) तथा सांयात्रिक नौकावणिक् निर्यामक के पास आये / पाकर उससे बोले'देवानुप्रिय ! नष्ट मन के संकल्प वाले होकर एवं मुख हथेली पर रखकर चिन्ता क्यों कर रहे हो ? तब उस निर्यामक ने उन बहुत-से कुक्षिधारकों, कर्णधारों, गभिल्लकों और सांयात्रिक नौकावणिकों से कहा---'देवानुप्रियो ! मेरी मति मारी गई है, यावत् पोतवाहन किस देश, दिशा या विदिशा में जा रहा है. यह भी मुझे नहीं जान पड़ता / अतएव मैं भग्नमनोरथ होकर चिन्ता कर रहा ६–तए णं ते कण्णधारा तस्स णिज्जामयस्स अंतिए एयमझें सोच्चा णिसम्म भीया तत्था उविग्गा उविग्गमणा व्हाया कयबलिकम्मा करयल-परिगहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु बहूणं इंदाण य खंदाण य जहा मल्लिनाए जाव उवायमाणा उवायमाणा चिठ्ठति / तब वे कर्णधार उस निर्यामक से यह बात सुनकर और समझ कर भयभीत हुए, त्रस्त हुए, उद्विग्न हुए, घबरा गये। उन्होंने स्नान किया, बलिकर्म किया और हाथ जोड़कर बहुत-से इन्द्र, स्कंद (कार्तिकेय) आदि देवों की मल्लि-अध्ययन में कहे अनुसार हाथ जोड़ कर मस्तक पर अंजलि करके मनौती मनाने लगे। ७-तए णं से णिज्जामए तओ मुहुत्तंतरस्स लद्धमईए, लद्धसुईए, लद्धसण्णे अमूढदिसाभाए जाए यावि होत्था / तए णं से णिज्जामए ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गभिल्लगा य संजत्ताणावावाणियगा य एवं वयासो—'एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! लद्धमईए जाव अमूढदिसाभाए जाए। अम्हे णं देवाणुप्पिया ! कालियदीवंतेणं संवूढा, एस णं कालियदीवे आलोक्कइ / 1. देखिए, अध्ययन ९वां 2. अ.१७ सूत्र 4. 3. देखिए अष्टम अध्ययन / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org