Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [ ज्ञाताधर्मकथा सुस्थित देव से मिल कर पाये / इत्यादि सब पूर्ववत्-समग्न वृत्तान्त कहना, केवल कृष्ण के मन में जो विचार उत्पन्न हुआ था, वह नहीं कहना / यावत् कुपित होकर उन्होंने हमें देशनिर्वासन की प्राज्ञा दे दी। २११--तए णं से पंडुराया ते पंच पंडवे एवं वयासो---'दुठ्ठ णं पुत्ता ! कयं कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाहिं / ' तब पाण्डु राजा ने पांच पाण्डवों से कहा-'पुत्रो ! तुमने कृष्ण वासुदेव का अप्रिय (अनिष्ट) करके बुरा काम किया / ' २१२-तए णं पंडू राया कोंति देवि सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी-'गच्छ गं तुम देवाणुप्पिया ! बारवई कण्हस्स वासुदेवस्स णिवेदेहि-'एवं खलु देवाणुपिया! तुम्हे पंच पंडवा णिविसया आणत्ता, तुमं च णं देवाणुप्पिया! दाहिणड्ढभरहस्स सामी, तं संदिसंतु णं देवाणुप्पिया! ते पंच पंडवा कयरं देसं वा दिसि वा विदिसि वा गच्छंतु ?' तदनन्तर पाण्डु राजा ने कुन्ती देवी को बुलाकर कहा-'देवानुप्रिये ! तुम द्वारका जायो और कृष्ण वासुदेव से निवेदन करो कि–'हे देवानुप्रिय ! तुमने पांचों पाण्डवों को देशनिर्वासन की अाज्ञा दी है, किन्तु हे देवानुप्रिय ! तुम तो समग्र दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के अधिपति हो / अतएव हे देवानप्रिय ! आदेश दो कि पांच पाण्डव किस देश में या दिशा अथवा किस विदिशा में जाएँ-कहाँ निवास करें ? 213 - तए णं सा कोंती पंडुणा एवं वुत्ता समाणी हस्थिखंधं दुरूहइ, दुरूहित्ता जहा हेट्ठा जाव.-'संदिसंतु णं पिउत्था ! किमागमणपओयणं? तए णं सा कोंती कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु पुत्ता ! तुमे पंच पंडवा णिविसया आणता, तुमं च णं दाहिणड्ढभरह [स्स सामी। तं संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ते पंच पंडवा कयरं देसं वा दिसं वा] जाव विदिसि वा गच्छंतु ? तब कुन्ती देवी, पाण्डु राजा के इस प्रकार कहने पर हाथी के स्कंध पर प्रारूढ होकर पहले कहे अनुसार द्वारका पहुँची। अग्र उद्यान में ठहरी। कृष्ण वासुदेव को सूचना करवाई / कृष्ण स्वागत के लिए आये। उन्हें महल में ले गये / यावत् पूछा-'हे पितृभगिनी ! अाज्ञा कीजिए, आपके आने का क्या प्रयोजन है ? तब कुन्ती देवी ने कृष्ण वासुदेव से कहा-'हे पुत्र ! तुमने पांचों पाण्डवों को देश-निकाले का आदेश दिया है और तुम समग्र दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के स्वामी हो, तो बतलायो वे किस देश में, किस दिशा या विदिशा में जाएँ ?' पाण्डु मथुरा की स्थापना २१४---तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंति देवि एवं वयासो-'अपूइवयणा णं पिउच्छा ! उत्तमपुरिसा-वासुदेवा बलदेवा चक्कवट्टी। तं गच्छंतु णं देवाणुप्पियए ! पंच पंडवा दाहिणिल्लं वेयालि, तत्थ पंडुमहुरं णिवेसंतु, ममं अदिट्ठसेवगा भवंतु।' त्ति कटु सक्कारेइ, सम्माणेइ, जाव [सक्कारित्ता संमाणिता] पडिविसज्जेइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org