Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 406 ] [ ज्ञाताधर्मकथा वाली धाय (3) आभूषण पहनाने वाली धाय (4) गोद में लेने वाली धाय और (5) खेलाने वाली धाय / यावत् एक गोद से दूसरी गोद में ले जाई जाती हुई वह बालिका, पर्वत की गुफा में रही हुई चंपकलता जैसे वायुविहीन प्रदेश में व्याधात रहित बढ़ती है, उसी प्रकार सुखपूर्वक बढ़ने लगी। तत्पश्चात् सुकुमालिका बाल्यावस्था से मुक्त हुई, यावत् (समझदार हो गई, यौवन को प्राप्त हुई) रूप से, यौवन से और लावण्य से उत्कृष्ट और उत्कृष्ट शरीर वाली हो गई। ३७-तत्थ णं चंपाए नयरीए जिणदत्ते नाम सत्यवाहे अडढे, तस्स णं जिणदत्तस्स भद्दा भारिया समाला इट्ठा जाव माणुस्सए कामभोए पच्चणुब्भवमाणा विहरइ / तस्स णं जिणदत्तस्स पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए सागरए नामं दारए सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे / चम्पा नगरी में जिनदत्त नामक एक धनिक सार्थवाह निवास करता था। उस जिनदत्त की भद्रा नामक पत्नी थी। वह सुकुमारी थी, जिनदास को प्रिय थी यावत् मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों का प्रास्वादन करती हुई रहती थी। उस जिनदत्त सार्थवाह का पुत्र और भद्रा भार्या का उदरजात सागर नामक लड़का था / वह भी सुकुमार (हाथों-पैरों वाला) एवं सुन्दर रूप से सम्पन्न था। ३८-तए णं से जिणदत्ते सत्थवाहे अन्नया कयाई साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिमिक्खमित्ता सागरदत्तस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं वोईवयइ, इमं च णं सूमालिया दारिया ण्हाया चेडियासंघ परिवुडा' उपि आगासतलगंसि कणगतंदूसएणं कोलमाणी कोलमाणी विहरइ / एक बार किसी समय जिनदत्त सार्थवाह अपने घर से निकला / निकल कर सागरदत्त के घर के कुछ पास से जा रहा था / उधर सुकुमालिका लड़की नहा-धोकर, दासियों के समूह से घिरी हुई, भवन के ऊपर छत पर सुवर्ण की गेंद से कीड़ा करती-करती विचर रही थी। ३९-तए णं से जिणदत्ते सत्यवाहे सूमालियं दारियं पासइ, पासित्ता सूमालियाए दारियाए रूवे य जोवणे य लावण्णे य जायविम्हए कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी--'एस णं देवाणुप्पिया ! कस्स दारिया ? किं वा णामधे से ?' तए णं ते कोडुबियपुरिसा जिणदत्तेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा करयल जाव एवं वयासी-'एस णं देवाणुप्पिया! सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स धूया भद्दाए अत्तया सूमालिया नाम दारिया सुकुमालपाणिपाया जाव उक्किट्ठा।' उस समय जिनदत्त सार्थवाह ने सुकुमालिका लड़की को देखा / देखकर सुकुमालिका लड़की के रूप पर, यौवन पर और लावण्य पर उसे आश्चर्य हुआ। उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और पूछा-देवानुप्रियो ! वह किसकी लड़की है ? उसका नाम क्या है ? जिनदत्त सार्थवाह के ऐसा कहने पर वे कौटुम्बिक पुरुष हर्षित और सन्तुष्ट हुए। उन्होंने हाथ जोड़ कर इस प्रकार उत्तर दिया-'देवानुप्रिय ! यह सागरदत्त सार्थवाह की पुत्री, भद्रा की आत्मजा सुकुमालिका नामक लड़की है / सुकुमार हाथ-पैर आदि अवयवों वाली यावत् उत्कृष्ट शरीर वाली है। ४०–तए णं से जिणवत्ते सत्थवाहे तेसि कोडुबियाणं अंतिए एयमद्रं सोच्चा जेणेव सए १.पाठान्तर--चेडियाचकवाल. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org