Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ सोलहवाँ अध्ययन : द्रौपदी ] [405 'रयणप्पभानो पुढवीअो उव्वट्टित्ता सण्णीसु उववन्ना / तो उव्वट्टित्ता असण्णीसु उववन्ना / तत्थ वि य णं सत्थवज्झा दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि रयणप्पभाए पुढवीए पलिओवमस्स असंखिज्जइभागट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णा / तो उव्वट्टित्ता जाइं इमाइं खहयरविहाणाई........' __इसका अर्थ इस प्रकार है-वह नागश्री रत्नप्रभा पृथ्वी से उद्वर्तन करके--निकलकर संज्ञी जीवों में उत्पन्न हुई / वहां से मरण-प्राप्त होकर असंज्ञी प्राणियों में जन्मी। वहाँ भी उसका शस्त्र द्वारा वध किया गया। उसके शरीर में दाह उत्पन्न हुआ। यथासमय मरकर दूसरी बार रत्नप्रभा पृथ्वी में पल्योपम के असंख्यातवें भाग को स्थिति वाले नारकों में नारक-पर्याय में जन्मी / वहाँ से निकल कर खेचरों की योनियों में उत्पन्न हुई ।-अंगसुत्ताणि, तृतीय भाग, पृ० 280 सुकुमालिका का कथानक ३४-सा णं तओऽणंतरं उवट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, चंपाए नयरोए, सागरदत्तस्स सस्थवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिसि दारियत्ताए पच्चायाया। तए णं सा भद्दा सत्यवाही णवण्हं मासाणं दारियं पयाया। सुकुमालकोमलियं गयतालुयसमाणं / तत्पश्चात् वह पृथ्वीकाय से निकल कर इसी जम्बूद्वीप में, भारतवर्ष में, चम्पा नगरी में सागरदत्त सार्थवाह की भद्रा भार्या की कख में बालिका के रूप में उत्पन्न हुई / तब भद्रा सार्थवाही ने नौ मास पूर्ण होने पर वालिका का प्रसव किया / वह बालिका हाथी के तालु के समान अत्यन्त सुकुमार और कोमल थी। ३५--तीसे दारियाए निव्वत्ते बारसाहियाए अम्मापियरो इमं एयारूवं गोन्नं गुणनिष्फन्तं नामधेज्ज करेंति-'जम्हा णं अम्हं एसा दारिया सुकुमाला गयतालुयसमाणा तं होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए नामधेज्जं सुकुमालिया।' तए णं तीसे दारियाए अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति सुकुमालिय त्ति। उस बालिका के बारह दिन व्यतीत हो जाने पर माता-पिता ने उसका यह गुण वाला और गुण से बना हुआ नाम रक्खा - 'क्योंकि हमारी यह बालिका हाथी के तालु के समान अत्यन्त कोमल है, अतएव हमारी इस पुत्री का नाम सुकुमालिका हो / ' तब बालिका के माता-पिता ने उसका 'सुकुमालिका' ऐसा नाम नियत कर दिया। ३६-तए णं सा सुकुमालिया दारिया पंचधाईपरिग्गहिया, तंजहा-खीरधाईए (मज्जणधाईए) मंडणधाईए, अंकधाईए, कोलावणधाईए, जाव [अंकाओ अंकं साहरिज्जमाणी रम्मे मणिकोट्टिमतले गिरिकंदरमल्लीणा इव चंपकलया निब्वाय-निव्वाघायंसि जाव [सुहंसुहेणं] परिवड्ढइ / तए णं सा सूमालिया दारिया उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण य जोवणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया [विण्णाणपरिणयमेत्ता जोवणगमणुपत्ता] यावि होत्था / तदनन्तर सुकुमालिका बालिका को पाँच धायों ने ग्रहण किया अर्थात् पाँच धायें उसका पालन-पोषण करने करने लगीं। वे इस प्रकार थीं-(१) दूध पिलाने वाली धाय (2) स्नान कराने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org