________________ सोलहवाँ अध्ययन : द्रौपदी] [ 395 ७-तं जइ णं ममं जाउयाओ जाणिस्संति, तो णं मम खिसिस्संति, तं जाव ताव ममं जाउयाओ ण जाणंति, ताव मम सेयं एयं सालइयं तित्तालाउं बहुसंभारनेहकडं एगंते गोवेत्तए, अन्नं सालइअं महुरालाउयं जाव नेहावगाढं उवक्खडेत्तए / एवं संपेहेइ, संपेहिता तं सालइयं जाव गोवेइ, अन्नं सालइयं महुरालाउयं उवक्खडेइ / सो यदि मेरी देवरानियाँ यह वृत्तान्त जानेंगी तो मेरी निन्दा करेंगी। अतएव जब तक मेरी देवरानियाँ न जान पाएँ तब तक मेरे लिए यहो उचित होगा कि इस शरदऋतु संबंधी, बहुत मसालेदार और स्नेह (तेल) से युक्त कटुक तुबे को किसी जगह छिपा दिया जाय और दूसरा शरद् ऋतु संबंधी या सारयुक्त मीठा तुबा मसाले डाल कर और बहुत-से तेल से छौंक कर तैयार किया जाय / नागश्री ने इस प्रकार विचार किया। विचार करके उस कटुक शरदऋतु संबंधी तुबे को यावत् छिपा दिया और मीठा तुबा तैयार किया / ८-उवक्खडेत्ता तेसि माहणाणं व्हायाणं जाव सुहासणवरगयाणं तं विपुलं असणं पाणं खाइम साइमं परिवेसइ / तए णं ते माहणा जिमियभुत्तुत्तरागया समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभूया सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था / तए गं ताओ माहणीओ व्हायाओ जाव विभूसियाओ तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आहारेंति, आहारित्ता जेणेव सयाई गेहाइं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सकम्मसंपउत्ताओ जायाओ। तत्पश्चात् वे ब्राह्मण स्नान करके यावत् सुखासन पर बैठे। उन्हें वह प्रचुर अशन, पान, खादिम और स्वादिम परोसा गया / वे ब्राह्मण भोजन कर चुकने के पश्चात् आचमन करके स्वच्छ होकर और परम शुचि होकर अपने-अपने काम में संलग्न हो गए / तत्पश्चात् स्नान की हुई और विभूषित हुई उन ब्राह्मणियों ने विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार जीमा। जीमकर वे अपने-अपने घर चली गई / जाकर वे भी अपने-अपने काम में लग गईं। स्थविर-आगमन ९-तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा नाम थेरा जाव बहुपरिवारा जेणेव चंपा णामं नयरी, जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं जाव [ओग्गहं' ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा] विहरति / परिसा निग्गया / धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया। उस काल और उस समय में धर्मघोष नामक स्थविर यावत् बहुत बड़े परिवार के साथ चम्पा नामक नगरी के सुभूमिभाग उद्यान में पधारे। पधार कर साधु के योग्य उपाश्रय की याचना करके, यावत् [संयम और तप से आत्मा को भावित करते] विचरने लगे। उन्हें वन्दना करने के लिए परिषद् निकली / स्थविर मुनिराज ने धर्म का उपदेश दिया। उपदेश सुन कर परिषद् वापिस चली गई। धर्मरुचि अनगार का भिक्षार्थ गमन १०–तए णं तेसि धम्मघोसाणं थेराणं अंतेवासी धम्मरुई नाम अणगारे ओराले जाव [घोरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org