Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चौदहवां अध्ययन : तेतलिपुत्र ] [361 १०-तए णं कलाए मूसियारदारए ते अभितरदाणिज्जे पुरिसे एवं वयासो -'एस चेव णं देवाणुप्पिया ! मम सुक्के जणं तेलिपुत्ते मम दारियानिमित्तेणं अणुग्गहं करेइ।' ते अधिभतरठाणिज्जे पुरिसे विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुष्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारित्ता संमाणित्ता पडिविसज्जेइ / तत्पश्चात् कलाद मूषिकारदारक ने उन अभ्यन्तर-स्थानीय पुरुषों से कहा—'देवानुप्रियो ! यही मेरे लिए शुल्क है जो तेतलिपुत्र दारिका के निमित्त से मुझ पर अनुग्रह कर रहे हैं।' इस प्रकार कहकर उसने उन अभ्यन्तर-स्थानीय पुरुषों का विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम से तथा पुष्प, वस्त्र, गंध से एवं माला और अलंकार से सत्कार किया, सम्मान किया / सत्कार-सम्मान करके उन्हें विदा किया। ११-तए णं [ते] कलायस्स मूसियारदारगस्स गिहाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव तेयलिपुत्ते अमच्चे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं एयमढं निवेयंति / तत्पश्चात् वे अभ्यन्तर-स्थानीय पुरुष कलाद मूषिकारदारक के घर से निकले / निकलकर तेतलिपुत्र अमात्य के पास पहुंचे। उन्होंने तेतलिपुत्र को यह पूर्वोक्त अर्थ (वृत्तान्त) निवेदन किया। १२-तए णं कलाए मूसियारदारए अन्नया कयाई सोहणंसि तिहि-नक्खत्त-मुहुत्तंसि पोट्टिलं दारियं व्हायं सव्वालंकारविभूसियं सीयं दुरुहइ, दुरुहिता मित्तणाइसंपरिधुडे साओ गिहाओ पडिणिखमइ, पडिणिक्खमित्ता सविड्ढीए तेयलिपुरं मज्झंमज्झेणं जेणेव तेयलिपुत्तस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोट्टिलं दारियं तेलिपुत्तस्स सयमेव भारियत्ताए दलयइ / तत्पश्चात् कलाद मूषिकारदारक ने अन्यदा शुभ तिथि, नक्षत्र और मुहूर्त में पोट्टिला दारिका को स्नान करा कर और समस्त अलंकारों से विभूषित करके शिबिका में प्रारूढ किया / वह मित्रों और ज्ञातिजनों से परिवृत होकर अपने घर से निकल कर, पूरे ठाठ के साथ, तेतलिपुर के बीचोंबीच होकर तेतलिपुत्र अमात्य के पास पहुँचा / पहुँच कर पोट्टिला दारिका को स्वयमेव तेतलिपुत्र की पत्नी के रूप में प्रदान किया। विवेचन-मूषिकारदारक कलाद शुभ तिथि, नक्षत्र और मुहूर्त में अपनी कन्या पोटिला का तेतलिपुत्र के घर ले जाकर विवाह करता है / यह उस युग का प्रायः सामान्य-सर्वप्रचलित नियम था / आधुनिक काल में जैसे वर के अभिभावक अपने मित्रों, संबंधियों और ज्ञातिजनों को साथ लेकर-वरात (वरयात्रा) के रूप में कन्या के घर जाते हैं, उसी प्रकार पूर्व काल में कन्यापक्ष के लोग अपने मित्रों आदि के साथ नगर के मध्य में होकर, धूमधाम से-ठाठ-बाट के साथ कन्या को वर के घर ले जाते थे। ऐसे उदाहरण भी उपलब्ध होते हैं, जब वरपक्ष के जन कन्यापक्ष के घर परिणय के लिए गए, किन्तु ऐसे उदाहरण थोड़े हैं-अपवाद रूप हैं / १३-तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं दारियं भारियत्ताए उवणीयं पासइ, पासित्ता पोट्टिलाए सद्धि पट्टयं दुरुहइ, दुरुहित्ता सेयापीएहि कलसेहि अप्पाणं मज्जावेइ, मज्जावित्ता अग्गिहोमं करेइ,' 1. पाठान्तर–कारेइ कारेत्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org