________________ चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र ] [363 संगोवेमाणीए विहरित्तए' त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहिता तेयलिपुत्तं अमच्चं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी तत्पश्चात् पद्मावती देवी को एक बार मध्य रात्रि के समय इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुा- 'कनकरथ राजा राज्य आदि में आसक्त होकर यावत् पुत्रों को विकलांग कर देता है, यावत् उनके अंग-अंग काट लेता है, तो यदि मेरे अब पुत्र उत्पन्न हो तो मेरे लिए यह श्रेयस्कर होगा कि उस पुत्र को मैं कनकरथ से छिपा कर पाल-पोसू।' पद्मावतो देवी ने ऐसा विचार किया और विचार करके तेतलिपुत्र अमात्य को बुलवाया। बुलवा कर उससे कहा--- १७-'एवं खलु देवाणुप्पिया! कणगरहे राया रज्जे य जाव' वियंगेह, तं जइ णं अहं देवाणुप्पिया ! दारगं पयायामि, तए णं तुम कणगरहस्स रहस्सियं चेव अणुपुग्वेण सारक्खमाणे संगोवेमाणे संवडढेहि, तए णं से दारए उम्मूक्कबालभावे जोवणगमणपत्ते तव य मम य भिक्खाभायणे भविस्सइ / ' तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे पउमावईए देवोए एयमलैं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता पडिगए। ___ 'हे देवानुप्रिय ! कनकरथ राजा राज्य और राष्ट्र आदि में अत्यन्त आसक्त होकर सब पुत्रों को अपंग कर देता है, अतः मैं यदि अब पुत्र को जन्म दूं तो कनकरथ से छिपा कर ही अनुक्रम से उसका संरक्षण, संगोपन एवं संवर्धन करना / ऐमा करने से वह बालक बाल्यावस्था पार करके, यौवन को प्राप्त होकर तुम्हारे लिए भी और मेरे लिए भी भिक्षा का भाजन बनेगा, अर्थात् वह तुम्हारा हमारा पालन-पोषण करेगा।' तब तेतलिपुत्र अमात्य ने पद्मावती के इस अर्थ (कथन) को अंगीकार किया। अंगीकार करके वह वापिस लौट गया। १८-तए णं पउमावई य देवी पोट्टिला य अमच्ची सममेव गन्भं गेण्हंति, सममेव गभं परिवहंति, सममेव गभं परिवड्ढंति / तए णं सा पउमावई देवो नवण्हं मासाणं पडिपुण्णाणं जावः पियदंसणं सुरूवं दारगं पयाया। जं रणि च णं पउमावई देवी दारयं पयाया तं रणि च पोट्टिला वि अमच्ची नवण्हं मासाणं पडिपुणाणं विणिहायमावन्नं दारियं पयाया। तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने और पोट्टिला नामक अमात्यी (अमात्य की पत्नी) ने एक हो साथ गर्भ धारण किया, एक ही साथ गर्भ वहन किया और साथ-साथ ही गर्भ की वृद्धि की। तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने नौ मास [ और साढ़े सात दिन] पूर्ण हो जाने पर देखने में प्रिय और सुन्दर रूप वाले पुत्र को जन्म दिया / / जिस रात्रि में पद्मावतो देवी ने पुत्र को जन्म दिया, उसी रात्रि में पोट्टिला अमात्यपत्नी ने भी नौ मास [ और साढ़े सात दिन ] व्यतीत होने पर मरी हुई बालिका का प्रसव किया / १९-तए णं सा पउमावई देवी अम्मधाई सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छह गं तुमे अम्मो ! तेयलिपुत्तगिहे, तेलिपुत्तं रहस्सियं चेव सद्दावेह / ' 1. अ. 14 सूत्र 15 2. पाठान्तर-'सममेव गब्भं परिवढं ति' यह पाठ किसी-किसी प्रति में उपलब्ध नहीं है। 3. प्रोप. सूत्र 143. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org