________________ नवम अध्ययन : माकन्दी] [ 303 ५२-न हु जुज्जसि एक्कियं अणाहं, अबंधवं तुज्झ चलणओवायकारियं उज्झिउमहण्णं / गुणसंकर ! अहं तुमे विहूणा, ण समत्था वि जीविउं खणं पि // 5 // 'मुझ अकेली, अनाथ, बान्धवहीन, तुम्हारे चरणों की सेवा करने वाली और अधन्या (हतभागिनी) को त्याग देना तुम्हारे लिए योग्य नहीं है / हे गुणों के समूह ! तुम्हारे बिना मैं क्षण भर भी जीवित रहने में समर्थ नहीं हूँ' / / 5 / / ५३-इमस्स उ अणेगझस-मगर-विविधसावय सयाउलघरस्स रयणागरस्स मज्झे / अप्पाणं वहेमि तुज्झ पुरओ एहि, णियत्ताहि जइ सि कुविओ खमाहि एक्कावराह मे // 6 // 'अनेक सैकड़ों मत्स्य मगर और विविध क्षुद्र जलचर प्राणियों से व्याप्त गृह रूप या मत्स्य आदि के घर-स्वरूप इस रत्नाकार के मध्य में तुम्हारे सामने मैं अपना वध करती हूँ। (अगर तुम ऐसा नहीं चाहते हो तो) प्रायो, वापिस लौट चलो। अगर तुम कुपित हो गये होनो तो मेरा एक अपराध क्षमा करो' / / 6 / / ५४–तुज्झ य विगयघणविमलससिमंडलगारसस्सिरीयं, सारयनवकमल-कुमुदकुवलयविमलदलनिकरसरिसनिभं / नयणं (निभनयणं) क्यणं पिवासागयाए सद्धा मे पेच्छिउं जे अवलोएहि, ता इओ ममं णाह जा ते पेच्छामि वयणकमलं // 7 // 'तुम्हारा मुख मेघ-विहीन विमल चन्द्रमा के समान है / तुम्हारे नेत्र शरऋतु के सद्यः विकसित कमल (सूर्यविकासी), कुमुद (चन्द्रविकासी) और कुवलय (नील कमल) के पत्तों के समान अत्यन्त शोभायमान हैं / ऐसे नेत्र वाले तुम्हारे मुख के दर्शन की प्यास (इच्छा) से मैं यहाँ आई हूँ। तुम्हारे मुख को देखने की मेरी अभिलाषा है / हे नाथ ! तुम इस ओर मुझे देखो, जिससे मैं तुम्हारा मुख-कमल देख लू” // 7 // ५५-एवं सप्पणयसरलमहुराई पुणो पुणो कलुणाई। वयणाई जंपमाणी सा पावा मग्गओ समण्णेइ पावहियया // 5 // इस प्रकार प्रेमपूर्ण, सरल और मधुर वचन बार-बार बोलती हुई वह पापिनी और पापपूर्ण हृदय वाली देवी मार्ग में पीछे-पीछे चलने लगी / / 8 / / ५६–तए णं से जिणरक्खिए चलमणे तेणेव भूसणरवेणं कण्णसुह-मणोहरेणं तेहि य सप्पणयसरल-महुर-भणिएहि संजायविउणराए रयणदीवस्स देवयाए तीसे सुंदरथण-जहण-वयण-कर-चरणनयण-लावण्ण-रूव-जोव्वणसिरिं च दिव्वं सरभ-सउवगहियाइं जाइं विब्बोय-विलसियाणि य विहसिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org