________________ 334] [ ज्ञाताधर्मकथा सामग्री तैयार की, यावत् कुमार का अभिषेक किया, यावत् जितशत्रु राजा ने सुबुद्धि अमात्य के साथ प्रव्रज्या अंगीकार कर ली। २९-तए णं जियसत्तू एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, बहूणि वासाणि परियायं पाणित्ता मासियाए संलेहणाए सिद्धे / तए णं सुबुद्धी एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, बहूणि वासाणि परियायं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए सिद्ध / दीक्षा अंगीकार करने के पश्चात् जितशत्रु मुनि ने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया / बहुत वर्षों तक दीक्षापर्याय पाल कर अन्त में एक मास की संलेखना करके सिद्धि प्राप्त की। दीक्षा अंगीकार करने के अनन्तर भुबुद्धि मुनि ने भी ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। बहत वर्षों तक दीक्षापर्याय पाली और अंत में एक मास की संलेखना करके सिद्धि पाई / ३०–एवं खलु जंबू ! समणेणं भगक्या महावीरेणं बारसमस्स णायज्झयणस्स अयमठ्ठ पन्नत्ते, ति बेमि। श्री सुधर्मास्वामी, जम्बूस्वामी से कहते हैं-इस प्रकार हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर ने बारहवें ज्ञात-अध्ययन का यह (उपर्युक्त) अर्थ कहा है / मैंने जेसा सुना वैसा कहा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org