________________ नवम अध्ययन : माकन्दी1 [ 299 जिसका समय समीप आया है और साक्षात् प्राप्त हुआ है ऐसे शैलक यक्ष ने कहा--'किसे तारू, किसे पालू ?' तब माकन्दीपुत्रों ने खड़े होकर और हाथ जोड़कर (मस्तक पर अंजलि घुमा कर) कहा'हमें तारिए, हमें पालिए / ' ___ तब शैलक यक्ष ने माकन्दोपुत्रों से कहा-'देवानुप्रियो ! तुम मेरे साथ लवणसमुद्र के बीचोंबीच गमन करोगे, तब वह पापिनी, चण्डा, रुद्रा, क्षुद्रा और साहसिका रत्नद्वीप की देवी तुम्हें कठोर, कोमल, अनुकूल, प्रतिकूल शृगारमय और मोहजनक उपसर्गों से उपसर्ग करेगी-डिगाने का प्रयत्न करेगी / हे देवानुप्रियो ! अगर तुम रत्नद्वीप की देवी के उस अर्थ का आदर करोगे, उसे अंगीकार करोगे या अपेक्षा करोगे, तो मैं तुम्हें अपनी पीठ से नीचे गिरा दूंगा। और यदि तुम रत्नद्वीप की देवता के उस अर्थ का आदर न करोगे, अंगीकार न करोगे और अपेक्षा न करोगे तो मैं अपने हाथ से, रत्नद्वीप की देवी से तुम्हारा निस्तार कर दूंगा।' ४०-तए णं ते मागंदियदारया सेलग जक्खं एवं वयासी-जं णं देवाणुप्पिया ! वइस्संति तस्स णं उववायवयणणिद्देसे चिट्ठिस्सामो।' तब माकन्दोपुत्रों ने शैलक यक्ष से कहा-'देवानुप्रिय ! आप जो कहेंगे, हम उसके उपपातसेवन, वचन-पादेश और निर्देश में रहेंगे। अर्थात् हम सेवक की भाँति आपकी आज्ञा का पालन करेंगे / ' छुटकारा ४१-तए णं से सेलए जक्खे उत्तरपुरच्छिम दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणइ, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाई दंडं निस्सरइ, दोच्चं पि तच्चं पि वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहणइ, समोहणित्ता एगं महं आसरूवं विउब्बइ। विउवित्ता ते मागंदियदारए एवं वयासी-'हं भो मागंदियदारया ! आरह गं देवाणुप्पिया ! मम पिट्ठसि / ' तत्पश्चात् शैलक यक्ष उत्तर-पूर्व दिशा में गया। वहाँ जाकर उसने वैक्रिय समुद्घात करके संख्यात योजन का दंड किया। दूसरी बार और तीसरी बार भी वैक्रिय समुद्घात से विक्रिया की। समुद्घात करके एक बड़े अश्व के रूप की विक्रिया को और फिर माकन्दीपुत्रों से इस प्रकार कहा - 'हे माकन्दीपुत्रो ! देवानुप्रियो ! मेरी पीठ पर चढ़ जायो।' ४२-तए णं से मागंदियदारया हट्ठतुट्ठा सेलगस्स जक्खस्स पणामं करेंति, करित्ता सेलगस्स पिट्टि दुरूढा। तए णं से सेलए ते मागंदियदारए पिट्टि दुरुढे जाणित्ता सत्तटुतालप्पमाणमेत्ताई उड्ढे वेहायं उप्पयइ, उप्पइत्ता य ताए उक्किट्ठाए तुरियाए देवयाए देवगईए लवणसमुई मज्झमझेणं जेणेव जंबुद्दोवे दीवे, जेणेव भारहे वासे, जेणेव चंपानयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। १-पाठान्तर–पढें / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org