Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [149 चतुर्थ अध्ययन : कूर्म] ४-तस्स णं मयंगतीरद्दहस्स अदूरसामंते एत्थ णं महं एगे मालुयाकच्छए होत्था,' वन्नओ। तत्थ णं दुवे पावसियालगा परिवसंति-पावा चंडा रोद्दा तल्लिच्छा साहसिया लोहियपाणी आमिसत्थी आमिसाहारा आमिसप्पिया आमिसलोला आमिसं गवेसमाणा रत्ति वियालचारिणो दिया पच्छन्नं चावि चिट्ठति / उस मृतगंगातीर ह्रद के समीप एक बड़ा मालुकाकच्छ था। उसका वर्णन द्वितीय अध्ययन के अनुसार यहाँ कहना चाहिए। उस मालुकाकच्छ में दो पापी शृगाल निवास करते थे / वे पाप का आचरण करने वाले, चंड (क्रोधी) रौद्र (भयंकर) इष्ट वस्तु को प्राप्त करने में दत्तचित्त और साहसी थे। उनके हाथ अर्थात् अगले पैर रक्तरंजित रहते थे। वे मांस के अर्थी, मांसाहारी, मांसप्रिय एवं मांसलोलुप थे। मांस की गवेषणा करते हुए रात्रि और सन्ध्या के समय घूमते थे और दिन में छिपे रहते थे। कूर्मों का निर्गमन ५-तए णं ताओ भयंगतीरद्दहाओ अन्नया कयाइं सूरियंसि चिरत्थमियंसि लुलियाए संझाए पविरलमाणुसंसि णिसंतपडिणिसंतंसि समाणंसि दुवे कुम्ममा आहारत्थी आहारं गवेसमाणा सणियं सणियं उत्तरंति / तस्सेव मयंगतीरद्दहस्स परिपेरंतेणं सव्वओ समंता परिघोलेमाणा परिघोलेमाणा वित्ति कप्पेमाणा विहरंति। तत्पश्चात् किसी समय, सूर्य के बहुत समय पहले अस्त हो जाने पर, सन्ध्याकाल व्यतीत हो जाने पर, जब कोई विरले मनुष्य ही चलते-फिरते थे और सब मनुष्य अपने-अपने घरों में विश्राम कर रहे थे अथवा सब लोग चलने-फिरने से विरक्त हो चुके थे, तब मृतगंगातीर ह्रद में से आहार के अभिलाषी दो कछुए बाहर निकले / वे मृतगंगातीर ह्रद के अासपास चारों ओर फिरते हुए अपनी आजीविका करते हए विचरण करने लगे, अर्थात पाहार की खोज में फिरने लगे। पापी शृगाल ६-तयाणंतरं च णं ते पावसियालगा आहारत्थी जाव आहारं गवेसमाणा मालुयाकच्छयाओ पडिणिक्खमंति। पडिणिक्खमित्ता जेणेब मयंगतीरे दहे तेणेव उवागच्छति / उवागच्छित्ता तस्सेव मयंगतोरद्दहस्स परिपेरतेणं परिघोलेमाणा परिघोलेमाणा वित्ति कप्पेमाणा विहरति / तए णं ते पावसियाला ते कुम्मए पासंति, पासित्ता जेणेव ते कुम्मए तेणेव पहारेत्थ गमणाए / तत्पश्चात् आहार के अर्थी यावत् आहार की गवेषणा करते हुए वे (पूर्वोक्त) दोनों पापी शृगाल मालकाकच्छ से बाहर निकले / निकल कर जहाँ मृतगंगातीर नामक हृद था, वहाँ पाए / पाकर उसी मृतगंगातीर ह्रद के पास इधर-उधर चारों ओर फिरने लगे और आहार की खोज करते हुए विचरण करने लगे-आहार की तलाश करने लगे। तत्पश्चात् उन पापी सियारों ने उन दो कछुओं को देखा / देखकर जहाँ दोनों कछुए थे, वहाँ आने के लिए प्रवृत्त हुए / 1. दि. अ. सूत्र 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org