Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 252] [ ज्ञाताधर्मकथा जस्स णं दुपयस्स वा जाव' णिवत्तेति, तं मा णं सामी ! तुम्भे तं चित्तगरं वज्झं आणवेह / तं तुम्भे गं सामी ! तस्स चित्तगरस्स अन्नं तयाणुरूवं दंडं निव्वत्तेह।' / तत्पश्चात् चित्रकारों की वह श्रेणी इस कथा-वृत्तान्त को सुनकर और समझ कर जहाँ मल्लदिन्न कमार था. वहाँ पाई / प्राकर दोनों हाथ जोड कर यावत मस्तक पर अंजलि करके कूमार को वधाया। वधा कर इस प्रकार कहा 'स्वामिन् ! निश्चय ही उस चित्रकार को इस प्रकार की चित्रकारलब्धि लब्ध हुई, प्राप्त हुई और अभ्यास में पाई है कि वह किसी द्विपद आदि के एक अवयव को देखता है, यावत् वह उसका वैसा ही पूरा रूप बना देता है / अतएव हे स्वामिन् ! आप उस चित्रकार के वध की आज्ञा मत दीजिए। हे स्वामिन् ! आप उस चित्रकार को कोई दूसरा योग्य दंड दे दीजिए।' 104 तए णं से मल्लदिन्ने तस्स चित्तगरस्स संडासगं छिदावेइ, निव्विसयं आणवेइ / से तए णं चित्तगरए मल्लदिन्नेणं निविसए आणते समाणे सभंडमत्तोवगरणमायाए मिहिलाओ नयरीओ णिक्खमइ, णिक्खमित्ता विदेहं जणवयं मज्झमझेण जेणेव हत्थिणाउरे नयरे, जेणेव करुजणवए. जेणेव अदीणसत्तू राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भंडनिक्खेवं करेइ, करित्ता चित्तफलगं सज्जेइ, सज्जित्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नगाए पायंगुदाणुसारेणं एवं णिवत्तेइ, णिवत्तित्ता कक्खंतरंसि छुब्भइ, छुब्भइत्ता महत्थं जाव पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता हथिणापुरं नयरं मज्झमज्झेणं जेणेव अदीणसत्तू राया तेणेव उवागच्छइ / उवागच्छित्ता तं करयल जाव वद्धावेइ, बद्धावित्ता पाहुडं उवणेइ, उवणित्ता 'एवं खलु अहं सामी! मिहिलाओ रायहाणीओ कुभगस्स रण्णो पुत्तेणं पभावईए देवीए अत्तएणं मल्लदिन्नेणं कुमारेणं निविसए आणत्ते समाणे इह हब्वमागए, तं इच्छामि णं सामी ! तुभं बाहुच्छायापरिग्गहिए जाव परिवसित्तए।' तत्पश्चात् मल्लदिन्न ने (चित्रकारों की प्रार्थना स्वीकार करके) उस चित्रकार के संडासक (दाहिने हाथ का अंगूठा और उसके पास की अंगुली) का छेदन करवा दिया और उसे देश-निर्वासन की प्राज्ञा दे दी। तब मल्लदिन्न के द्वारा देश-निर्वासन की प्राज्ञा पाया हुआ वह चित्रकार अपने भांड, पात्र और उपकरण प्रादि लेकर मिथिला नगरी से निकला / निकल कर वह विदेह जनपद के मध्य में होकर जहाँ हस्तिनापुर नगर था, जहाँ कुरुनामक जनपद था और जहाँ अदीनशत्रु नामक राजा था, वहाँ पाया / पाकर उसने अपना भांड (सामान) आदि रखा / रख कर चित्रफलक ठीक किया / ठीक करके विदेह की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली के पैर के अंगूठे के आधार पर उसका समग्र रूप चित्रित किया। चित्रित करके वह चित्रफलक (जिस पर चित्र बना था वह पट) अपनी काँख में दबा लिया। फिर महान् अर्थ वाला यावत् राजा के योग्य बहुमूल्य उपहार ग्रहण किया / ग्रहण करके हस्तिनापुर नगर के मध्य में होकर अदीनशत्र राजा के पास पाया / अाकर दोनों हाथ जोड़ कर उसे वधाया और वधा कर उपहार उसके सामने रख दिया / फिर चित्रकार ने कहा-'स्वामिन् ! मिथिला राजधानी में कुभ राजा के पुत्र और प्रभावती देवी के आत्मज मल्लदिन्न कुमार ने मुझे देश-निकाले 1. अष्टम अ. 96 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org