Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ आठवां अध्ययन : मल्ली ] [ 281 जिस समय तीर्थकर भगवान् का निर्वाण हुया तो शक देवेन्द्र का प्रासन चलायमान हुआ। अवधिज्ञान का उपयोग लगाने से उसे निर्वाण की घटना का ज्ञान हुआ। उसी समय वह सपरिवार सम्मेदशिखर पर्वत पर पाया। भगवान के निर्वाण के कारण उसे खेद हना। आँखों लगे / उसने भगवान् के शरीर की तीन प्रदक्षिणाएँ की। फिर उस शरीर से थोड़ी दूर ठहर गया। इसी प्रकार सब इन्द्रों ने किया। तत्पश्चात शक्रेन्द्र ने अपने प्राभियोगिक देवों से वन में से सुन्दर गोशीर्ष चन्दन के काष्ठ मंगवाये / तीन चिताएँ रची गईं। क्षीरसागर से जल मँगवाया गया। उस जल से भगवान् को स्नान कराया गया। हंस जैसा धवल और कोमल वस्त्र शरीर पर ढंक दिया। फिर शरीर को सर्व अलंकारों से अलंकृत किया गया। गणधरों और साधुनों के शरीर का अन्य देवों ने इसी प्रकार संस्कार किया। तत्पश्चात् शक इन्द्र ने आभियोगिक देवों से तीन शिविकाएँ बनवाई। उनमें से एक शिविका पर भगवान् का शरीर स्थापित किया और उसे चिता के समीप ले जाकर चिता पर रखा / अन्य देवों ने गणधरों और साधुओं के शरीर को दो शिविकाओं में रखकर दो चिताओं पर रखा। तत्पश्चात् अग्निकुमार देवों ने शक्रेन्द्र की आज्ञा से तीनों चिताओं में अग्निकाय की विकुर्वणा की और वायुकुमार देवों ने वायु को विकुर्वणा की। अन्य देवों ने तीनों चिताओं में अगर, लोभान, धूप, घी और मधु आदि के घड़े के घड़े डाले / अन्त में जब शरीर भस्म हो चुके, तब मेघकुमार देवों ने उन चिताओं को क्षीरसागर के जल से शान्त कर दिया / तत्पश्चात् शकेन्द्र ने प्रभु के शरीर की दाहिनी तरफ की ऊपर की दाढ़ ग्रहण की। ईशानेन्द्र ने बाँयी अोर की ऊपर की दाढ ली। चमरेन्द्र ने दाहिनी ओर की नीचे की और बलीन्द्र ने बायी पोर की नीचे की दाढ़ ग्रहण की / अन्य देवों ने अन्यान्य अंगोपांगों की अस्थियाँ ले लीं। तत्पश्चात् तीनों चिताओं के स्थान पर बड़े-बड़े स्तूप बनाये और निर्वाणमहोत्सव किया। सब तीर्थंकरों के निर्वाण का अंतिम संस्कार-वर्णन इसी प्रकार समझना चाहिए। १९६-एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पन्नते त्ति बेमि। श्री सुधर्मा स्वामी कहते हैं इस प्रकार निश्चय ही, हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने आठवें ज्ञाताध्ययन का यह अर्थ प्ररूपण किया है / मैंने जो सुना, वही कहता हूँ। अाठवां अध्ययन समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org