Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ आठवां अध्ययन : मल्ली] [251 भीतर प्रवेश किया। प्रवेश करके हाव, भाव, विलास और बिब्बोक से युक्त रूपों (चित्रों) को देखता-देखता जहाँ विदेह की श्रेष्ठ राजकन्या मल्ली का, उसी के अनुरूप चित्र बना था, उसी ओर जाने लगा। उस समय मल्लदिन कुमार ने विदेह की उत्तम राजकुमारी मल्ली का, उसके अनुरूप बना हुमा चित्र देखा / देख कर उसे इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुअा-'अरे, यह तो विदेहवर-राजकन्या मल्ली है !' यह विचार आते ही वह लज्जित हो गया, वीडित हो गया और व्यदित हो गया, अर्थात् उसे अत्यन्त लज्जा उत्पन्न हुई / अतएव वह धीरे-धीरे वहाँ से हट गया-पीछे लौट गया / १०१-तए णं मल्लिदिन्नं अम्मधाई पच्चोसक्कंतं पासित्ता एवं वयासी-'कि णं तुमं पुत्ता ! लज्जिए वीडिए विअडे सणियं सणियं पच्चोसक्कइ ? तए णं से मल्लदिन्ने अम्मधाई एवं वयासो-'जुत्तं णं अम्मो! मम जेट्टाए भगिणीए गुरुदेवभूयाए लज्जणिज्जाए मम चित्तगरणिवत्तियं सभं अणुपविसित्तए? __तत्पश्चात् हटते हुए मल्लदिन्न को देख कर धाय माता ने कहा-'हे पुत्र ! तुम लज्जित, वीडित और व्यर्दित होकर धीरे-धीरे हट क्यों रहे हो ?' तब मल्ल दिन्न ने धाय माता से इस प्रकार कहा---'माता ! मेरी गुरु और देवता के समान ज्येष्ठ भगिनी के, जिससे मुझे लज्जित होना चाहिए, सामने, चित्रकारों की बनाई इस सभा में प्रवेश करना क्या योग्य है ?' १०२-तए णं अम्मधाई मल्लदिन्ने कुमारे एवं वयासो-'नो खलु पुत्ता! एस मल्ली विदेहवररायकन्ना चित्तगरएणं तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तिए। तए णं मल्लदिन्ने कुमारे अम्मधाईए एयमझें सोच्चा णिसम्म आसुरुत्ते एवं क्यासी-'केस णं भो! चित्तयरए अप्पत्थियपत्थिए जाव [दुरंतपंतलक्खणे होणपुण्ण-चाउद्दसीए सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-] परिवज्जिए जेण ममं जेट्ठाए भगिणीए गुरुदेवभूयाए जाव निव्वत्तिए ? ति कटु तं चित्तगरं वज्झं आणवेइ। धाय माता ने मल्लदिन कुमार से इस प्रकार कहा-'हे पुत्र ! निश्चय ही यह साक्षात् विदेह की उत्तम कुमारी मल्ली नहीं है किन्तु चित्रकार ने उसके अनुरूप (हूबहू) चित्रित की है-उसका चित्र बनाया है। __ तब मल्लदिन्न कुमार धाय माता के इस कथन को सुन कर और हृदय में धारण करके एकदम क्रुद्ध हो उठा और बोला-'कौन है वह चित्रकार मौत की इच्छा करने वाला, यावत् [कुलक्षणी, हीन काली चतुर्दशी का जन्मा एवं लज्जा बुद्धि आदि से रहित] जिसने गुरु और देवता के समान मेरी ज्येष्ठ भगिनी का यावत् यह चित्र बनाया है ? इस प्रकार कह कर उसने चित्रकार का वध करने की प्राज्ञा दे दी। १०३-तए णं सा चित्तगरसेणी इमीसे कहाए लट्ठा समाणा जेणेव मल्लदिन्ने कुमारे तेणेव उवागच्छइ / उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं जाव वद्धावेइ, बद्धावित्ता एवं वयासी-- ‘एवं खलु सामी ! तस्स चित्तगरस्स इमेयारूवा चित्तगरलद्धी लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org