Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ सप्तम अध्ययन : रोहिणीज्ञात ] [203 मर्दन किया, उन्हें साफ किया। अब शालि के बहुत-से कुड़व हो गए, यावत् उन्हें कोठार के एक भाग में रख दिया / कोठार में रख कर उनका संरक्षण और संगोपन करते हुए विचरने लगे। 15- तए णं ते कोडुबिया तच्चसि वासारत्तंसि महावुट्टिकायंसि बहवे केयारे सुपरिकम्मिए करेंति, जाव लुणेति, लुणित्ता संवहंति, संवहित्ता खलयं करेंति, करिता मलेति, जाव बहवे कुंभा जा ____तए णं ते कोडुबिया साली कोट्ठागारंसि पक्खिवंति, जाव विहरति / चउत्थे वासारत्ते बहवे कुंभसया जाया। तत्पश्चात् उन कौटुम्बिक पुरुषों ने तीसरी बार वर्षाऋतु में महावृष्टि होने पर बहुत-सी क्यारियाँ अच्छी तरह साफ की / यावत् उन्हें बोकर काट लिया। काटकर भारा बांध कर वह्न किया। वहन करके खलिहान में रक्खा। उनका मर्दन किया / यावत् अब वे बहुत-से कुम्भ प्रमाण शालि हो गये। तत्पश्चात् उन कौटुम्बिक पुरुषों ने वह शालि कोठार में रखे, यावत् उनकी रक्षा करने लगे। चौथी वर्षाऋतु में इसी प्रकार करने से सैकड़ों कुम्भ प्रमाण शालि हो गए। परीक्षापरिणाम १६-तए णं तस्स धण्णस्स पंचमयंसि संवच्छरंसि परिणममाणंसि पुस्वरतावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे अज्झस्थिए जाव समुष्पज्जित्था--एवं खलु मम इओ अईए पंचमे संवच्छरे चउण्हं सुण्हाणं परिक्खणट्टयाए ते पंच सालिअक्खया हत्थे दिन्ना, तं सेयं खलु मम कल्लं जाव जलते पंच सालिअक्खए परिजाइत्तए / जाव जाणामि ताव काए किहं सारक्खिया वा संगोविया वा संवडिया वा ? जाव त्ति कट्ट एवं संपेहेइ, संहिता कल्लं जाव जलते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं मित्तणाइ० चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गं जाव सम्माणित्ता तस्सेव मित्तणाइ० चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्त पुरओ जेठें उज्झियं सद्दावेइ / सद्दाविता एवं वयासी तत्पश्चात् जब पांचवां वर्ष चल रहा था, तब धन्य सार्थवाह को मध्य रात्रि के समय इस प्रकार का विचार यावत् उत्पन्न हुअा मैंने इससे पहले के-अतीत पांचवें वर्ष में चारों पुत्रवधुओं को परीक्षा करने के निमित्त, पाँच चावल के दाने उनके हाथ में दिये थे / तो कल यावत् सूर्योदय होने पर पाँच चावल के दाने माँगना मेरे लिए उचित होगा। यावत् जानू तो सही कि किसने किस प्रकार उनका संरक्षण, संगोपन और संवर्धन किया है ? धन्य सार्थवाह ने इस प्रकार का विचार किया, विचार करके दूसरे दिन सूर्योदय होने पर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम बनवाया। मित्रों, ज्ञातिजनों आदि तथा चारों पुत्रवधुओं के कुलगृहवर्ग के समक्ष जेठी पुत्रवधू उज्झिका को बुलाया और बुलाकर इस प्रकार कहा १७-'एवं खलु अहं पुत्ता ! इओ अईए पंचमंसि संवच्छरंसि इमस्स मित्तणाइ० चउण्ह सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स य पुरओ तव हत्थंसि पंच सालिअक्खए दलयामि, जया णं अहं पुत्ता ! एए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org