Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ ग्राठवां अध्ययन : मल्ली] [ 245 तए णं से रुप्पी राया सुबाहं दारियं अंके निवेसेइ, निवेसित्ता सुबाहुए दारियाए स्वेण य जोव्वणेण य लावण्णण य जायविम्हए वरिसधरं सदाबेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी–'तुम णं देवाणुप्पिया ! मम दोच्चेणं बहूणि गामागरनगर जाव सण्णिवेसाइं आहडिसि, बहूण य राईसर जाव सत्यवाहपभिईणं गिहाणि अणुपविससि, तं अत्थियाई से कस्सइ रण्णो वा ईसरस्स वा कहिंचि एयारिसए मज्जणए दिट्टपुव्वे, जारिसए णं इमीसे सुबाहुदारियाए मज्जणए ?' तत्पश्चात् अन्तःपुर की स्त्रियों ने सुबाहु कुमारी को उस पाट पर बिठलाया / बिठला कर श्वेत और पीत अर्थात् चाँदी और सोने आदि के कलशों से उसे स्नान कराया। स्नान करा कर सब अलंकारों से विभूषित किया। फिर पिता के चरणों में प्रणाम करने के लिए लाई। तब सुबाहु कुमारी रुक्मि राजा के पास आई / आकर उसने पिता के चरणों का स्पर्श किया। उस उमय रुक्मि राजा ने सुबाहु कुमारी को अपनी गोद में बिठा लिया / बिठा कर सूबाह कुमारी के रूप, यौवन और लावण्य को देखने से उसे विस्मय हुआ। विस्मित होकर उसने वर्षधर को बुलाया / बुलाकर इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रिय ! तुम मेरे दौत्य कार्य से बहुत-से ग्रामों, आकरों, नगरों यावत् सन्निवेशों में भ्रमण करते हो और अनेक राजाओं, राजकुमारों यावत् सार्थवाहों आदि के गृह में प्रवेश करते हो, तो तुमने कहीं भी किसी राजा या ईश्वर (धनवान्) के यहाँ ऐसा मज्जनक (स्नान-महोत्सव) पहले देखा है, जैसा इस सुबाहु कुमारी का मज्जन-महोत्सव है ?'. 14-- तए णं से वरिसधरे प्पि करयलपरिगहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वदासी-एवं खलु सामी ! अहं अन्नया तुब्भे णं दोच्चेणं मिहिलं गए, तत्थ णं मए कुभगस्स रण्णो धूयाए, पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए विदेहरायवरकन्नयाए मज्जणए दिठे, तस्स. णं मज्जणगस्स इमे सुबाहूए दारियाए मज्जणए सयसहस्सइमं पि कलं न अग्घेइ / तत्पश्चात् वर्षधर (अन्तःपुर के रक्षक षंढ-विशेष) ने रुक्मि राजा से हाथ जोड़ कर मस्तक पर हाथ घुमान घुमाकर अंजलिबद्ध होकर इस प्रकार कहा-'हे स्वामिन् ! एक बार मैं आपके दूत के रूप में मिथिला गया था। मैंने वहाँ कुभ राजा की पुत्री और प्रभावती देवी की आत्मजा विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली का स्नान-महोत्सव देखा था। सुवाहु कुमारी का यह मज्जन-उत्सव उस मज्जनमहोत्सव के लाखवें अंश को भी नहीं पा सकता। ...८५-तए णं से रुप्पी राया वरिसधरस्स अंतिए एयमझें सोच्चा णिसम्म सेसं तहेव मज्जणगजणियहासे दूतं सदावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-.-जेणेव मिहिला नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तत्पश्चात् वर्षधर से यह बात सुनकर और हृदय में धारण करके, मज्जन-महोत्सव का वृत्तांत सुनने से जनित हर्ष (अनुराग) वाले रुक्मि राजा ने दूत को बुलाया। शेष सब वृत्तांत पहले के भना। दूत को बुलाकर इस प्रकार कहा-(मिथिला नगरी में जाकर मेरे लिए मल्ली कुमारी की मँगनी करो। बदले में सारा राज्य देना पड़े तो उसे भी देना स्वीकार करना, मादि) यह सुनकर दूत मिथिला नगरी जाने को रवाना हो गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org