Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 60 ] [ ज्ञाताधर्मकथा णं अवस्सविप्पजहणिज्जे से के णं जाणइ अम्मयाओ! के पुटिव गमणाए ? के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुहिं अब्भणुन्नाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पब्वइत्तए। तत्पश्चात् माता-पिता के इस प्रकार कहने पर मेघकुमार ने माता-पिता से कहा-'हे मातापिता ! आप मुझसे यह जो कहते हैं कि हे पुत्र ! तुम हमारे इकलौते पुत्र हो, इत्यादि सब पूर्ववत् कहना चाहिए, यावत् सांसारिक कार्य से निरपेक्ष होकर श्रमण भगवान् महावीर के समीप प्रवजित होना–सो ठीक है, परन्तु हे माता-पिता ! यह मनुष्यभव ध्र व नहीं है अर्थात् सूर्योदय के समान नियमित समय पर पुनः पुन: प्राप्त होने वाला नहीं है, नियत नहीं है अर्थात् इस जीवन में उलटफेर होते रहते हैं, यह अशाश्वत है अर्थात् क्षण-विनश्वर है, तथा सैकड़ों व्यसनों एवं उपद्रवों से व्याप्त है, विजली की चमक के समान चंचल है. अनित्य है, जल के बुलबुले के समान है, दुब की नोक पर लटकने वाले जलबिन्द के समान है, सन्ध्यासमय के बादलों की लालिमा के सदश है, स्वप्नदर्शन के समान है-अभी है और अभी नहीं है, कुष्ठ आदि से सड़ने, तलवार आदि से कटने और क्षीण होने के स्वभाव वाला है तथा आगे या पीछे अवश्य ही त्याग करने योग्य है / हे माता-पिता ! इसके अतिरिक्त कौन जानता है कि कौन पहले जाएगा (मरेगा) और कौन पीछे जाएगा? अतएव हे माता-पिता ! मैं आपकी आज्ञा प्राप्त करके श्रमण भगवान् महावीर के निकट यावत् प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहता हूँ।' १२३--तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासो-'इमाओ ते जाया ! सरिसियाओ सरिसत्तयाओ सरिसव्वयाओ सरिसलावन्तरूवजोवणगुणोववेयाओ सरिसेहिन्तो रायकुलेहिन्तो आणियल्लियाओ भारियाओ, तं भुजाहि णं जाया! एताहिं सद्धि विपुले माणुस्सए कामभोगे, तओ पच्छा भुत्तभोगे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि / ' तत्पश्चात् माता-पिता ने मेघकुमार से इस प्रकार कहा-'हे पुत्र ! यह तुम्हारी भार्याएँ समान शरीर वाली, समान त्वचा वाली, समान वयं वाली, समान लावण्य, रूप, यौवन और गुणों से सम्पन्न तथा समान राजकुलों से लाई हुई हैं / अतएव हे पुत्र ! इनके साथ विपुल मनुष्य संबंधी कामभोगों को भोगो / तदनन्तर भुक्तभोग होकर श्रमण भगवान् महावीर के निकट यावत् दीक्षा ले लेना। १२४-तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरं एवं वयासी-'तहेव गं अम्मयाओ ! जंगं तब्भे ममं एवं वयह- 'इमाओ ते जाया ! सरिसियाओ जाव समणस्स भगवओ महावीरस्स पव्वइस्ससि'एवं खलु अम्मयाओ! माणुस्सगा कामभोगा असुई असासया वंतासवा पित्तासवा खेलासवा सुक्कासवा सोणियासवा दुरुस्सासनीसासा दुरुयमुत्त-पुरीस-पूय-बहुपडिपुन्ना उच्चार-पासवण-खेल-जल्ल-सिंघाणगवंत-पित्त-सुक्क-सोणितसंभवा अधुवा अणियया असासया सडण-पडण-विद्धंसणधम्मा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जा / से के णं अम्मयाओ! जाणंति के पुब्वि गमणाए ? के पच्छा गमणाए ! तं इच्छामि णं अम्मयाओ! जाव पव्वइत्तए।' तत्पश्चात् मेघकुमार ने माता-पिता से इस प्रकार कहा-'हे माता-पिता ! आप मुझे यह जो कहते हैं कि–'हे पुत्र ! तेरी ये भार्याएँ समान शरीर वाली हैं इत्यादि, यावत् इनके साथ भोग भोगकर श्रमण भगवान महावीर के समीप दीक्षा ले लेना; सो ठीक है, किन्तु हे माता-पिता ! मनुष्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org