Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ द्वितीय अध्ययन : संघाट ] [ 125 ३८-तए णं धण्णे सत्थवाहे विजएणं तक्करेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्टइ। तए णं से धण्णे सत्यवाहे मुहत्तंतरस्स बलियतरागं उच्चारपासवणेणं उच्चाहिज्जमाणे विजयं तकरं एवं वयासी-एहि ताव विजया ! जाव अवक्कमामो / तए णं से विजए धण्णं सत्थवाहं एवं वयासी-- 'जइ णं तुम देवाणुप्पिया ! तओ विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करेहि, ततो हं तुम्हेहिं सद्धि एगंतं अवक्कमामि / ' धन्य सार्थवाह विजय चोर के इस प्रकार कहने पर मौन रह गया। इसके बाद, थोड़ी देर में धन्य सार्थवाह उच्चार-प्रस्रवण की अति तीव्र बाधा से पीडित होता हुआ विजय चोर से फिर कहने लगा-विजय, चलो, यावत् एकान्त में चलें। तब विजय चोर ने धन्य सार्थवाह से कहा-'देवानुप्रिय ! यदि तुम उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में से संविभाग करो अर्थात् मुझे हिस्सा देना स्वीकार करो तो मैं तुम्हारे साथ एकान्त में चलू। ३९-तए णं से धण्णे सत्थवाहे विजयं एवं क्यासी-~-'अहं णं तुम्भं तओ विउलाओ असणपाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करिस्सामि।' तए णं से विजए धण्णस्स सत्थवाहस्स एयम पडिसुणेइ / तए णं से विजए धण्णणं सद्धि एगते अवक्कमेइ, उच्चारपासवणं परिद्ववेइ, आयंते चोक्खे परमसुइभूए तमेव ठाणं उवसंकमित्ता णं विहरइ / तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह ने विजय से कहा- मैं तुम्हें उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में से संविभाग करूंगा-हिस्सा दूंगा। तत्पश्चात् विजय ने धन्य सार्थवाह के इस अर्थ को स्वीकार किया / फिर विजय, धन्य सार्थवाह के साथ एकान्त में गया / धन्य सार्थवाह ने मल-मूत्र का परित्याग किया। फिर जल से स्वच्छ और परम शुचि हुआ / लौट कर अपने उसी स्थान पर आ गया। ४०-तए णं सा भद्दा कल्लं जाव' जलते विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं जाव' परिवेसेइ / तए णं से धण्णे सस्थवाहे विजयस्स तक्क रस्स तओ विउलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करेइ / तए णं से धण्णे सत्थवाहे पंथयं दासचेडं विसज्जेइ। तत्पश्चात् भद्रा सार्थवाही ने दूसरे दिन सूर्य के देदीप्यमान होने पर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार करके (पहले की तरह) पंथक के साथ भेजा। यावत् पंथक ने धन्य को जिमाया। तब धन्य सार्थवाह ने विजय चोर को उस विपल अशन. पान. खादिम और स्वादिम में से भाग दिया। तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह ने पंथक दास चेटक को रवाना कर दिया। भद्रा का कोप ४१–तए णं से पंथए भोयणपिडयं गहाय चारगाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिवखमित्ता रायगिहं नगरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गेहे, जेणेव भद्दा भारिया, तेणेव उवागच्छइ / उवागच्छित्ता भई 1. प्र. अ. सूत्र 28 2. द्वि. अ. सूत्र 33-34. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org