________________ 58] [ ज्ञाताधर्मकथा ११८-तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरो दोच्चं पि तच्च पि एवं वयासी-एवं खलु अम्मयाओ ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते। से वि य णं मे धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए, अभिरुइए / तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुम्भेहि अब्भणुन्नाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं आगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। तत्पश्चात् मेघकुमार माता-पिता से दूसरी बार और तीसरी बार इस प्रकार कहने लगा--- 'हे माता-पिता ! मैंने श्रमण भगवान महावीर से धर्म श्रवण किया है / उस धर्म को मैंने इच्छा की है, बार-बार इच्छा की है, वह मुझे रुचिकर हुआ है / अतएव हे माता-पिता ! मैं आपकी अनुमति प्राप्त करके श्रमण भगवान महावीर के समीप मुण्डित होकर, गहवास त्याग कर अनगारिता की प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहता हूँ-मुनिदीक्षा लेना चाहता हूँ। माता का शोक ११९-तए णं सा धारिणी देवी तमणिठं अकंतं अप्पियं अमान्नं अमणामं अस्सुयपुवं फरुसं गिरं सोच्चा णिसम्म इमेणं एयारवेणं मणोमाणसिएणं महया पुत्तदुक्खेणं अभिभूता समाणी सेयागयरोमकूव-पगलंत-विलीणगाया सोयभरपवेवियंगी णित्तेया दीणविमणबयणा करयल-मलिय व्व कमलमाला तक्खण-ओलुग्ग-दुब्बलसरीरा लावन्नसुन्न-निच्छाय-गसिरीया पसिढिलभूसणपडतखुम्मिय-संचुन्नियधवलवलय-पन्भट्ठउत्तरिज्जा सूमालविकिन्नकेसहत्था मुच्छावसणठ्ठचेयगरुई परसुनियत्त व्व चंपगलया निव्वत्तमहिम ब्व इंदलट्ठी विमुक्कसंधिबंधणा कोट्टिमतलंसि सन्चंगेहि धसत्ति पडिया। तब धारिणी देवी इस अनिष्ट (अनिच्छित), अप्रिय, अमनोज्ञ (ग्रप्रशस्त) और अमणाम (मन को न रुचने वाली), पहले कभी न सुनी हुई, कठोर वाणी को सुनकर और हृदय में धारण करके महान् पुत्र-वियोग के मानसिक दुःख से पीड़ित हुई / उसके रोमकूपों में पसीना पाकर अंगों से पसीना झरने लगा / शोक की अधिकता से उसके अंग कांपने लगे / वह निस्तेज हो गई / दीन और विमनस्क हो गई। हथेली से मली हुई कमल की माला के समान हो गई / 'मैं प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहता हूँ' यह शब्द सुनने के क्षण में ही वह दुःखी और दुर्बल हो गई। वह लावण्यरहित हो गई, कान्तिहीन हो गई, श्रीविहीन हो गई, शरीर दुर्बल होने से उसके पहने हए अलंकार अत्यन्त ढीले हो गये, हाथों में पहने हए उत्तम वलय खिसक कर भूमि पर जा पडे और चर-चर हो गये। उसका उत्तरीय वस्त्र खिसक गया / सुकुमार केशपाश बिखर गया / मूर्छा के वश होने से चित्त नष्ट हो गया-वह बेहोश हो गई / परशु से काटी हुई चंपकलता के समान तथा महोत्सव सम्पन्न हो जाने के पश्चात् इन्द्रध्वज के समान (शोभाहीन) प्रतीत होने लगी / उसके शरीर के जोड़ ढीले पड़ गये। ऐसी अवस्था होने से वह धारिणी देवी सर्व अंगों से धस्-धड़ाम से पृथ्वीतल (फर्श पर गिर पड़ी। माता-पुत्र का संवाद १२०-तए णं सा धारिणी देवी ससंभमोवत्तियाए तुरियं कंचभिगार-मुहविणिग्गयसीयलजल-विमलधाराए परिसिंचमाणा निव्वावियगायलट्ठी उक्खेवण-तालविट-वीयणग-जणियवाएणं सफुसिएणं अंतेउरपरिजणेणं आसासिया समाणी मुत्तावलिसन्निगासपवडतअंसुधाराहि सिंचमाणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org