Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
पारिणामिकाणां संग्रहः, 'से किं तं उदइए णामे' अथ किं तत् औदयिकं नाम 'उदइए णामे दुविहे पन्नत्ते औदयिकं नाम द्विविधं प्रज्ञप्तम् 'तं जहा' तद्यथा-'उदइए य उदयनिष्फन्नेय' औदयिकं च उदयनिष्पन्नं च, ‘एवं जहा सत्तरसमे सए पढमे उद्देसए भावो तहेव इहवि' एवं यथा भगवती सूत्रस्य सप्तदशे शते प्रथमोद्देशके भाव स्तथैव इहापि, सप्त दशशतकीय प्रथमोद्देशके यथा भावसंबन्धे कथित स्तथैव इहापि नामसंवन्धे वक्तव्यः । 'णवरं इमं नाम णाणत' नवरम्-केरलमिदं नाम्ना नानात्वं भेदः सप्तदशशतके भावाश्रयणेन सूत्रमधीतम् इहतु नामशब्दमाश्रित्य कथितम् एतावानेव द्वयोः प्रकरणयोर्भेद इत्यर्थः । 'सेसं तहेव जाव सन्निवाइए' तिक ६ यहां यावत् पद से औपशमिक क्षायिक, क्षायोपशमिक और परिणामिक इनका संग्रह हुआ है।
___'से कि तं उदइए णामे' हे भदन्त ! औदयिक नाम-भाव कितने प्रकार का है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'उदइए णामे दुविहे पत्ते हे गौतम ! औदयिक नाम दो प्रकार का कहा गया है। 'तं जहा' जैसे 'उदइए य उदयनिष्फन्ने य' औदयिक और उदयनिष्पन्न । एवं जहा सत्त. रसमे सए पढमे उद्देसए भावो तहेव इह वि' इस प्रकार से जैसा कथन इसी भगवती सूत्र में १७ वे शतक के प्रथम उद्देशक में भावों के सम्बन्ध में कहा गया है वैसा ही कथन सम्पूर्ण रूप से यहां पर भी नाम के सम्बन्ध में कहना चाहिये । 'नवरं इमं नाम जाणत्तं' यही बात इस सूत्र द्वारा सूत्रकार ने प्रकट की है। अर्थात् वहां भावों को लेकर कथन किया गया है यहां नाम शब्द को लेकर कथन किया गया है ? सो यही
અહીંયા યાવત્ પદથી પથમિક ક્ષાયિક ક્ષાપશમિક અને અને પારિણ મિકને સંગ્રહ થયે છે.
'से किं त उदइए णामे' समन् मोहयि नाम-ला Year प्राना gn १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ -'उदयइए णामे दुविहे पन्नत्त है गौतम ! मोहयि नाम से प्रारना । छे. 'तौं जहा' त मा प्रमाणे छ.-'उदइए य उदयनिष्फन्ने य' मोहाय मने यनिरूपन्न. 'एवं जहा सत्तमे नए पढमे उद्देसए भावो तहेव इह वि' प्रभा मा भगवती सूत्रना १७ સત્તરમાં શતકના પહેલા ઉદ્દેશામાં ભાવેના સંબંધમાં જે પ્રમાણે કથન કર્યું છે. એ જ પ્રમાણેનું કથન સંપૂર્ણ રીતે અહીંયા નામના સંબંધમાં પણ કહેવું नये 'नवरं इमं नाम णाणत्त” से पात मा सूत्रद्वारा सूत्रधारे प्रगट ४२ છે અર્થાત ત્યાં ભાવને લઈને કથન કરવામાં આવેલ છે અને અહીયાં નામ न न थन रेख छ मेगा मामे न मा छ. 'सेस तहेव
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬