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[ xxii ] सुतीक्ष्ण है और निर्णय का आशय परिपुष्ट । उनकी शोधकृति पाठक में उत्पन्न करती है एक अभिनव अवधान - वह अवधान जो जैन रहस्यवादी और दिव्य पुरुषों की युगयुगीन समृद्ध सांस्कृतिक सम्पदा से सम्बद्ध है। साध्वी मुक्तिप्रभा ने जैन योग की निधियों को अनावृत करते हुए भारतीय योग की अवधारणा को परिबंहित किया है। उनके द्वारा प्रस्तुत ग्रन्थसूची और सन्दर्भात्मक विवरण उनके वैदुष्य को स्पष्टतया प्रख्यापित करते हैं। प्रतिपाद्य विषय की साहित्यिक प्रस्तुति भारतीय विश्वविद्यालयों की शोध कृतियों के स्तर के अत्यधिक अनुरूप है। साध्वी मुक्तिप्रभा हिन्दी में यथार्थता और सामर्थ्य के साथ लेखन करती हैं।
साध्वी मुक्तिप्रभा को विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की पी-एच.डी. उपाधि प्रदान करने का जो सौभाग्य मिला है वह विक्रम विश्वविद्यालय के लिए गौरव का विषय है। मेरा विश्वास है कि विषय के अनुरूप विक्रम विश्वविद्यालय इसका मूल्यांकन विशेष रूप से कर सकता है। इस कार्य के लिये विषय के समीक्षकों द्वारा जैन यौगिक सिद्धान्त और साधना से सम्बन्धित जैन अध्ययन के क्षेत्र में एक अग्रणी साहसिक कृत्य के रूप में प्रशंसा की जायेगी।
कुल सचिव 11-8-82