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साध्वी मुक्तिप्रभा के पी-एच. डी. शोध प्रबन्ध का परीक्षक प्रतिवेदन
जैन परम्परा में योग [जैन दर्शन में योग : एक समालोचनात्मक अध्ययन ] पर साध्वी मुक्तिप्रभा द्वारा लिखित वस्तुतः उत्कृष्ट शोधप्रबन्ध के अवलोकन से मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हुई है। यह कृति प्रायः संस्कृत; प्राकृत भाषाओं और मूल-ग्रन्थों से परवर्ती काल के जनभाषामय जैन साहित्य में प्राप्त जैन योग के प्रामाणिक मूलग्रन्थों पर आधारित है। योग के अभ्यास और सिद्धान्त की व्यवस्थित व्याख्या के रूप में प्रस्तुत शोधकृति एक अत्यधिक साहसिक कार्य और अद्भुत परिश्रम की परिणति है, जिसको अप्रकम्प्य आस्था और पूर्ण समर्पित भावना के साथ लेखिका ने सम्पन्न किया है। इस बृहदाकार ग्रन्थ के पृष्ठ आध्यात्मिकता की सुगन्ध से ओतप्रोत हैं । यह कृति प्रतिपद स्वयं की दृष्टि और योग्य शोध निर्देशक डॉ. रायनाडे के अनुसार निष्पादित साध्वी मुक्तिप्रभा के गहन अध्यात्मपरिष्कृत चिन्तन को अभिव्यक्त करती है । दार्शनिक लेखन के रूप में विचारणीय यह कृति अत्यधिक उच्च कोटि की है और प्रकाशित होने पर यह कृति प्रत्येक दर्शनशास्त्र-सम्बन्धी ग्रन्थालय में आदरणीय स्थान के योग्य होगी। मैं इस शोधकृति से इतना अधिक प्रभावित हुआ हूँ कि इसके अंग्रेजी में अनुवाद तथा हिन्दी और अंग्रेजी दोनों रूपों में प्रकाशन अतिशीघ्र करने हेतु अनुशंसा करता हूँ। भारतीय दर्शन तथा संस्कृति के क्षेत्र में यह महान् अवदान है और केवल भारत में ही नहीं, पश्चिम में भी प्रख्यापन के योग्य है। दुर्बोध विषय की ऐसी निर्व्याज, यथार्थ और वैदुष्यमय व्याख्या विरल ही प्राप्त होती है।
अवबोध की गहनता के अभाव से रहित यह शोधकृति विवरणों की दृष्टि से व्यापक है। जैन योग के गुह्य सिद्धान्तों और रहस्यमय अभ्यासानुभव में दीक्षित हुए बिना कोई व्यक्ति ऐसे अद्भुत प्रबन्ध का प्रणयन नहीं कर सकता। वैदिक परम्परा के योग के साथ तुलनाएँ अत्यधिक उचित और उपकारक हैं । वे दोनों परम्पराओं में योग के उन्मुक्त मानस से किये गये ग्रहण से अवच्छिन्न हैं । साध्वी मुक्तिप्रभा ने अपनी विचारधारा को कहीं भी जैन योगानुशासन के धार्मिक रूढ़ि से उत्प्रेरित मूल्यांकन में प्रवाहित होने नहीं दिया है। उन्होंने भारतीय योग को अधिक आयत फलक पर चित्रित करते हुए उसकी परिधि का बृंहण किया है। यह शोधकृति इस आशय से एक मौलिक ग्रन्थ है कि उनके द्वारा अधीन और परामृष्ट वाड्.मय के बारे में प्रस्तुत व्याख्या
जैनयोग के मूल्यांकन के लिये प्रत्यग्र दृष्टिकोण को उद्घाटित करती है। अध्येय .. विषय का उनके द्वारा किया गया मूल्यांकन आलोचनात्मक है। उनकी विश्लेषणशक्ति ।