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SXSIOTSIRISIOISOIDOE विधानुशासन POSDISCSSSCISIOTSI ३०. एकाक्षर मंत्र को कूट कहते हैं। फल-x ३१. एकाक्षर मंत्र को निरशंक भी कहते हैं। फल-x ३२. दो अक्षर का मंत्र सत्त्वहीन कहा गया है। फल-x ३३. चार अक्षर का मंत्र केकर कहलाता है। फल-x ३४. छः या साढ़े सात अक्षर का मंत्र बीज हीन कहलाता है। फल -x ३५. साढ़े बारह अक्षर के मंत्र को धूमित माना गया है। फल- वह निन्दित है। ३६. साढ़े तीन बीज से युक्त बीस-तीस तथा इक्कीस अक्षर का मंत्र आलिंगत कहा गया है। फल-x ३७. जिस मंत्र में दन्त स्थानीय अक्षर हों, वह मंत्र मोहित बताया गया है। फल-x ३८. चौबीस या सत्ताईश अक्षर के मंत्र को क्षुधार्त जानना चाहिये। फल-x ३९. ग्यारह, पच्चीस अथवा तेईस अक्षर का मंत्र दृप्त (अतिदीप्त ) कहलाता है। फल-x ४०. छब्बीस, छत्तीस तथा उनतीस अक्षर के मंत्र को हीनांग कहते हैं। फल - x ४१. अट्ठाईस और इकत्तीस अक्षर का मंत्र अत्यन्त क्रुद्ध ( अत्यन्त क्रूर ) कहा जाता है। फल - यह सम्पूर्ण कामों में निन्दित माना गया है। ४२. यह बत्तीस अक्षर से लेकर तिरेसठ अक्षर तक काजो मंत्र है उसे वीडित( लग्नित )समझना चाहिये। फल- यह समस्त कार्यों की सिद्धि में समर्थ नहीं होता। ४३. पैंसठ अक्षर के मंत्र को शान्त मानस जानना चाहिये। . फल-x