Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
भ० ऋषभदेवजी--निर्नामिका का वृत्तांत
-
.
-
.
-
.
-
.
-
.
-
.
4
-
4
दी, जो अपनी प्रभा से दिशाओं को प्रकाशित एवं सुशोभित कर रही थी। वह अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक थी ललितांग देव को अपनी ओर आता हुआ देख कर वह हर्ष एवं स्नेहपूर्वक उठी और उसका सत्कार किया । वे दोनों आपस में क्रीड़ा करने लगे। कालान्तर में स्वयंप्रभा देवी का अवसान हो गया। उसके वियोग से ललितांग देव को भारी आघात लगा। वह तत्काल मूच्छित हो गया, फिर सावचेत होने पर विलाप करने लगा और प्रिया का रटन करते हुए इधर-उधर भटकने लगा।
महाबल राजा (ललितांग का पूर्वभव) के निष्क्रमण और स्वर्ग-गमन के बाद स्वयंबुद्ध मन्त्री को भी वैराग्य हो गया। वह श्री सिद्धाचार्य के पास दीक्षित हो गया। वर्षों तक संयम की आराधना कर के ईशानेन्द्र का 'दढधर्मा' नाम का सामानिक देव हआ। वह अपने पूर्वभव के सम्बन्धी ललितांग देव की दुर्दशा देख कर तत्काल उसके पास आया
और उसे समझाने लगा। उसने कहा--' बन्धु ! तू स्त्री के पीछे इतना पागल क्यों हो रहा है ? अरे, अपने को सम्हाल। धीर पुरुष तो प्राण जाने का समय आने पर भी विचलित नहीं होते, तब तू तो उन्मादी ही हो गया है ।" दृढ़वर्मा के उपदेश का ललितांग देव पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह कहने लगा--"मित्र ! प्राणों का त्याग तो सहन हो
है. किन्त प्राणप्रिया का विरह सहन नहीं हो सकता। तुझे मालम नहीं कि संसार में --" सारं सारंगलोचना" सार है तो एक मृगनयनी ही। इसके अतिरिक्त सभी निःसार है।" ललितांग का मोहोदय तीव्रतर देख कर मित्र देव दुःखी हुआ । उसने अवधिज्ञान के उपयोग से जान कर कहा-“मित्र ! घबराओ नहीं, तुम्हारी होने वाली प्रिया को मैने देख लिया है । मैं तुम्हें बताता हूँ, सुनो-.
निर्नामिका का वृत्तांत
पृथ्वी के ऊपर धातकीखंड के पूर्व-विदेह में नन्दी ग्राम है । वहाँ 'नागिल' नामक गृहस्थ रहता है। वह दरिद्र है। वह दिनभर भटकता रहता है, फिर भी उसकी और उसके कुटुम्ब की उदरपूर्ति नहीं हो पाती और भूखा-प्यासा ही सो जाता है । जैसा वह दरिद्र है, वैसी ही उसकी स्त्री ' नागश्री' भी दुर्भागिनी है। उसके छः पुत्रियाँ है । उनकी भूख भी दूसरों की अपेक्षा बहुत अधिक है। वे सब लड़कियां कुरूपा और घृणापात्र है। इसके बाद नागश्री फिर गर्भवती हुई । नागिल ने पत्नी को पुनः गर्भवती जान कर विचार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org