Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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गाथा
१७१
[४०] विषय गाथा
विषय उपरिम लोकके मुख एवं भूमिका
ऊर्ध्वलोकके मुख व भूमिका विस्तार विस्तार तथा उसकी उंचाई
___ तथा उसकी उंचाई १९२ उपरिम लोक और उसके अर्धभागका उपरिम लोकमें दश स्थानोंके व्यासार्थ घनफल
हानि-वृद्धि व गुणकारोंका प्रमाण १९३ उपरिम लोकमें त्रसनालीका घनफल १७२ उपरिम लोकम दश स्थानोंका घनफल १९८ त्रसनालीसे रहित और उससे सहित
ब्रह्मकल्पके समीप एक व दो राजुके . उपरिम लोकका घनफल १७३ प्रवेशमें नीचे व ऊपर स्तम्भोंकी उंचाई२०० अधोलोकके मुख व भूमिका विस्तार
स्तम्भान्तरित क्षेत्रोंका घनफल २०१ तथा उंचाई
१७५ स्तम्भान्तरित और मध्यम क्षेत्रका रत्नप्रभादिक पृथिवियोंके पृथक् पृथक्
___ सम्मिलित धन फल
२०२ विस्तारक परिज्ञानार्थ हानि-वृद्धिका उपरिम लोकमें क्षुद्र भुजाओंका विस्तार २०३
प्रमाण व उसके निकालने की विधि १७६ ऊर्ध्वलोकमें दलराजु व मध्यम क्षेत्रके रत्नप्रभादिक पृथिवियोंके विस्तारार्थ
अतिरिक्त अपूर्ण बाह्य व अभ्यन्तर गुणकार १७८ क्षेत्रोंका घनफल
२०८ रत्नप्रभादिकोंका घनफल लानेके लिये दलराजुओं व मध्यक्षेत्रका घनफल २१३ गुणकार
१७९ अपूर्ण खण्ड, दलराजु और मध्यक्षेत्रका अधोलोकान्तके उभय पार्श्वभागोंमें तीन,
सम्मिलित धन फल
२१४ दो और एक राजुके प्रवेशमें
लोकके आठ भेद व उनका पृथक् उंचाईका प्रमाण १८० पृथक् निरूपण
२१५ त्रिकोण और एक लंबी भुजावाले
अधोलोकके आठ भेदोंका विशेष क्षेत्रके घनफलको निकालनेकी
निरूपण
२३४ विधि व उसका प्रमाण १८१ उपरिम लोकके आठ भेदोंका विशेष लोकके दोनों ओरके तीन तीन अभ्य
निरूपण
२५१ न्तर क्षेत्रों व मध्यम क्षेत्रका सम्मि- वातवलयांके स्वरूप व वर्णादिका कथन लित घनफल
करते हुए लोकके भिन्न भिन्न वंशादि पृथिवियोंकी स्तम्भबाह्य
स्थानोंमें उनके बाहल्यका निरूपण २६७ भुजाओंका विस्तार १८४ । अधोलोकस्थ सात पृथिवियोंके पार्श्वभा. अधोलोकक एक राजु विस्तृत व इतने
गोंमें स्थित वातवलयोंका पृथक् ही ऊंचे उन्नीस खण्डों तथा इनसे
पृथक् बाहल्य
२७४ बाह्य क्षेत्रोंका पृथक् पृथक् व
उपरिम लोकके ग्यारह स्थानोंमें वातसम्मिलित घनफल
१८५ । वलयोंका पृथक् पृथक् बाहल्य । २७७
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