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देखिये इसकी सिद्धिकरने वाले दो पाठः
" पुलाए णं भंते ! किं सामाइयसंजम होजा, छेओवट्ठापणियसंजमे होजा, परिहारविसुद्धियसंजमे होजा, सुहुमसंपरायसंजमे होजा, अहक्खायसंजमे होज्जा ? गोयमा ! सामाइयसंजमे होजा, छेओवट्ठावणियसंजमे होज्जा, णो परिहारविसु. द्धियसंजमे होज्जा, णो मुहुमसंपरायसंजमे होज्जा, णो अहक्खायसंजमे होज्जा, एवं बउसवि । एवं पडिसेवणाकुसीलेवि।" . .
(भगवती-पत्र-१७३३) ___ अर्थ:-हे भगवन् ! पुलाकनियंठा, क्या सामायिकसयममें । होता है, छेदोपस्थापनीयसंयममें होता है, परिहारविशुद्धिसंयममें होता है, सूक्ष्मसंपरायसंयममें होता है, और यथाख्यातसंयममें होता है ? भगवान्ने कहाः- हे गौतम ! सामायिकसंयममें होता है, छेदोपस्थापनीयसंयममें होता है । और परिहारविशुद्धिसंयम, सूक्ष्मसंपरायसंयम तथा यथाख्यातसंयममें नहीं होता | इसी तरहसे बकुश और प्रतिसेवणाकुशीलमें भी समझ लेना। ___ जब यह सिद्ध हुआ कि-बकुशादि नियंठे सामायिकचारित्र
और छेदोपस्थापनीयचारित्रमें ही होते हैं, तब यह देखनेकी आवश्यकता है कि-बकुशादि नियंठे तीर्थमें ही होते हैं कि अतीर्थमें । इसके लिये भगवतीसूत्रके, ६२५ श० ६ उ० पत्र १७३७ के पाठको देखिये:
"पुलाए णं भंते ! किं तित्थे होजा, अतित्थे होज्जा ?। गोयमा ! तित्थे होज्जा, णो अतित्थे होज्जा एवं बउसेवि । एवं पडिसेवणाकुसीलेवि । " .